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मनुष्य जा लोगन व गुण ही दग्न सक्त हैं, उनम कल दोपहास की प्रवृत्ति है। इसी महजबुद्धि ने पंडितराज जगन्नाथकृत 'चित्रमीमामा खण्डन' श्रादि को जन्म दिया | हिन्दी - समालोचना साहित्य में कृष्णानन्द गुप्त - लिखित ' प्रमाद जी के दो नाटक ' यदि इसी प्रकार की रचनाए है । मस्कृत-साहित्य मे श्राचार्यपद्धति में भी दूसरी का स्वडन किया गया था । परन्तु वह खडन-पद्धति में बहुत कुछ भिन्न था। वह केवल खडन के लिए न था । वह साध्य नहीं था, साधन था । अपने मत को मली माति पुष्ट और area करने के लिए विरोधी मतां का समुचित इन अनिवार्य था । खनपद्धति सोलहो याने दीपदर्शनप्रणाली है। ईर्ष्या, द्वेष यादि रहित होकर की गई दीपवान्तक आलोचना भी दूषित और रचनाओं का प्रचार रोकने तथा साहित्यकारों को त्रुटियों और दोनों के प्रति सावधान करने लिए साहित्य की महत्वपूर्ण आवश्यकता है ।
संस्कृत-साहित्य में खाइनपति के दो रूप मिलते है । एक तो श्रानाय द्वारा उन सिद्धान्तों या ग्रंथों का इन जिनकी इन्होंने स्वीकार नहीं किया; उदाहरणार्थ अभिनव गुप्त-कृत मद्र लोल्लट, श्री शंकुक और न नायक को रमविषयक व्याख्या का दीपनिरूपण | इसका उद्देश था वास्तविक ज्ञान का प्रचार | दूसरे रूप में वह खंडन है जिसमें मन्सरादिग्रस्त बालोचक ने अपने पाहित्य और आलोचित की अज्ञता या दीनता का प्रदर्शन करने का प्रयास किया है, यथा जगन्नाथ राय का 'चित्रमीमामा - खडन' । इम पद्धतिकी विशेषता है केवल त्रुटियों या अभावो की समीक्षा । द्विवेदी जी की वनपद्धति दो प्रकार की है - श्रमाव-मुलक और दीपमुलक । पहली का उद्देश था हिन्दी के अभावों की आलोचना द्वारा उनकी प्रति के लिए हिन्दी साहित्यकारों को प्रेरित करना । इसके दो रूप है -- एक का उदाहरण है "हिन्दी साहित्य" सरीखे व्यंग्यचित्र और दूसरी के उदाहरण 'कवियों की उर्मिला विषयक उदासीनता' यादि लेख है जिनमे हिन्दी की आवश्यकताओं की ओर ध्यान दिया गया है। 'हिन्दी - नवरन' आदि लेखों में भी यत्र तत्र आलोचना की इस पद्धति का पुट है | 3
१. 'सरस्वती', १६०२ ई०, पृ० ३५ ।
२. 'रमज्ञरंजन' में सकलित ।
३. "वे दिखलाते कि कौन कौन सी बातें होने से किसी कवि की गणना रत्न करियों में हो सकती है । फिर कविरत्रों की कवितादीति की भिन्न भिन्न प्रभात्रों की मात्रा निर्दिष्ट करते, जिससे यह जाना जा सकता कि कितनी प्रभा होने में बृहत् सभ्य और लघुची म उन कवियों को स्थान दिया जा सकता है । यदि वे ऐसा करते तो उनके बतलाए हुए लक्षणों की जाच करने में सुमीता होता, तो लोग इस बात की परीक्षा कर सकते कि जिन गुणाने लेखका ने रवि को कविग्नीवी के पोग्य वे