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किं सा तरुणी ? नहि नहि वारणी बारणस्य मधुरशीलस्य ॥
अपनी तथा दूसरों की प्रशंसा में महान कवियों और आचार्यों ने भी सूक्तियों की र | हिन्दी मे भी प्रशंसात्मक सूक्तिया लोकप्रचलित हुई, यथा
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नोदय
तावद्भा मारमाति उदिते नैषधे काव्ये क्व माघः क्व च भारविः ॥ रुचिरस्वरवर्णपदा नवरसरुचिरा जगन्मनोहरति ।
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कवितामञ्जरी यस्य रामभ्रमरभूषिता ॥
आधुनिक हिन्दी - साहित्य में भी सूक्तिपद्धति पर रचनाएं हुई हैं । डाक्टर रसाल वशतक' का प्राक्कथन, 'शेषस्मृतिया' की रामचन्द्र शुक्ल - लिखित भूमिका आदि कृि (धुनिक समालोचना के मांचे में ढली हुई प्रवर्द्धित, संस्कृत, गद्यमय और प्रशंसात् नीलोत्पलदलश्यामां विज्जिकां मामजानता । वथैव इंडिना प्रोतं सर्वशुक्ला सरस्वती ॥
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सूर सूर तुलसी ससी उडुगन कंसवदास |
के कवि खद्योत सम जहं तई करहि प्रकास || कविताकर्त्ता तीन हैं तुलसी केमव सूर । कविता खेती इन लुनी कांकर बिनत मंजूर | तुलसी गङ्गदु भए सुकचिन के सरदार | इनके काव्य में मिली भाषा विविध प्रकार || साहित्यकानने ह्यस्मिश्जङ्ग मस्तुलसीतरुः ।
कवीनामगलर्षो नूनं वासवदत्तया ।
बाणभट्ट 'हर्षचरित' की भूमिका ! यदि हरिस्मरणे सरसं मनो यदि बिलासकथासु कुतूहलम् । मधुरकोमलकान्तपदावलिं श्रृणु तदा जयदेवसरस्वतीम् ॥ जयदेव, 'गीतगोविन्द की भूमिका !
व भामनाटकचक्रे पिच्छेकै तिरते परीक्षितुम् । स्वप्नवासवदत्तस्य दाहकोभून पावकः ||
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निमग्नेन क्लेशैर्मननजल धेरन्तरुदर मयोनीनो लोक ललितर भगंगाधरमणिः । हरन्नन्तर्ध्वान्त हृदयमधिरूढो गुणवता - मलंकारान सर्वानपि गलितगर्वान रचचतु '
विज्जिका देवी
दितराज नगनाथ
चारण-'हर्षचरित'
रसगंगाधर, पृ० २३