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हिन्दी-भाया और साहित्य क पुजारी द्विपदी जी हिन्दी की टीन दशा से विशेष प्रभावित थे । साहित्यसम्बन्धी विपयो पर लिखित उनकी कविताएं तत्कालीन साहित्य का बहुत कुछ
आभास देती हैं। उनमें कही मायावी सम्पादकों की बंचक लीलानी का निरूपण है,' कहीं हिन्दीभाषियों द्वारा नागरी के त्यागे जाने और विदेशी भाषाओं के अपनाए जाने पर ग्वेदप्रकाश है, २ कही सरकारी कार्यालयां, कचहरियो अादि में हिन्दी को उचित स्थान दिलाने के लिए निवेदन है, 3 कहीं संस्कृत बंगला, मराठी, अँगरेजी श्रादि के सामने हिन्दी की हीनता, तुकडो की अलंकारवादिता, कवित्वहीन पद्यरचना और समस्यापूरको तथा वडीबोली के विरोधी व्रजभाषाभक्तों की विडम्बना से व्यथित कविहृदय का व्यक्तीकरण है,४ कही यशोलोलुप, ईर्ष्यालु, चोर और अपंडित हिन्दी ग्रन्यकर्ताओं की यथार्थ झाकी है, कही - कविता का अंगभंग करने वाले हिन्दीपकारो के प्रति क्रोध, शोक तथा उपहास की व्यंजना
है और कहीं हिन्दी को आश्रय देने के लिए देशी नरेशो से विनय की गई है ।७ यही प्राग्दि वेदीयुग-अराजकता-युग-का चित्र है । 'समय नहीं है', 'मुझे लिखना नहीं पाता' आदि बहानी के अाधार पर विदेशीभाषाग्रेनी हिन्दुओ और हिन्दीभाषियो को हिन्दीसेवा के पथ का पथिक बनाने के लिए ही युगनिर्माता द्विवेदी ने 'संदेश' की रचना की। ,
रविवर्मा आदि चित्रकारी के चित्रो ने हिन्दीकविया का ध्यान विशेष आकृष्ट किया। उन चित्रों की वस्तु पर द्विवेदी जी ने स्वयं कविताएं लिखी और दूसरों से भी लिखवाई। द्विवेदी-सम्पादित 'कविताकलाप' इसी प्रकार की कविताओं का संग्रह है । द्विवेदी जी की रम्भा', 'कुमुद-सुन्दरी', 'महाश्वेता', 'उषाम्वप्न' आदि चित्रपरिचयात्मक रचनात्रो का अालम्बन पौगणिक या आधुनिक युग की नारी है । अादर्श नारियों के चरित्र अंकित करक वे भारतीय नारी-ममाज को सुधारना और मरत, परिष्कृत तथा मंजी हुई पद्यभापा खड़ीबोली की प्रतिष्ठा एवं प्रचार करना चाइने थे । रविवर्मा के चित्रों का गुणानुवाद भी इन रचनाओं का उद्देश जान पड़ता है । द्विवेदी जी ने हिन्दी-हितैषियों की प्रशंसा में और अवमर-विशेष पर भी अनेक कविताएं लिया । ८ 'बलीबर्द', 'काककृजितम्', 'जम्बुकी-न्याय', 'टेमू की टाग' यथा- द्विवेदी-काव्यमाला' में संकलित 'समाचारपत्रसम्पादकस्तवः' में।
, 'नागरी तेरी यह दशा' में। ,, नागरी का विनयपत्र' में।
., 'हे कविते' में। यथा- द्विवेदी-काव्यमाला' में संकलित 'ग्रन्थकारलक्षण' में।
'स्वाम प्रार्थना'
कवितायें आदि