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किया है, 'देवरूप म उसकी प्रतिष्ठा की है, कहीं उसके रमणीय प्राकृतिक दृश्यों का रूपाकन किया है और कही देश तथा स्वदेशी वस्तुओं के प्रति सरल प्रेम की व्यंजना की है । ४ पाचवें रूप मे कवि द्विवेदी की स्वतंत्रता की आकाक्षा का व्यक्तीकरण हुआ है । यह afroयक्ति प्रधानतया पाँच प्रकार से हुई है। कहीं देश के कल्याण के लिए देवीदेवताओ की दुहाई दी गई है, " कही उत्थान के लिए देशवासियों को विनम्र प्रोत्साहन दिया गया है, ही तीत की तुलना में वर्तमान का चित्रण करके भविष्य सुधारने की चेतावनी दी गई७ है, कही राष्ट्रीय जागृति के लिए मेलजाल का राग अलापा गया है और कहीं देश के उद्धार के लिए बाहुबल मे क्रान्ति कर देने का संकेत किया गया है |
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3.
३ यथा-
यथा -- जहाँ हुए व्यास मुनि प्रधान, 1 रामादि राजा अति कीर्तिमान | जो थी जगत्पूजित धन्यभूमि
यथा
है.
वही हमारी यह ग्रार्यभूमि || 'द्विवेदी - काव्यमाला' पु० ४०६ ।
state धार हमारे तुम्हीं गले के हार हमारे, जै जै जै जै देश |
वह जंगल की हवा कहां है ? कहां ने का मना है ? वह मोरों का शोर कहां है कोयल की मीठी तानों को
?
४. यथा- 'जन्म भूमि' में,
५ यशा
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'द्विवेदी काव्यामाला' में संकलित ।
ग्रालस्य फूट, मदिरा, मद दोप सारे,
यह कहीं टरते न टारे ।
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'द्विवेदी - काव्यमाला' पृ० ४२४ । वह इस दिल की दवा कहाँ है ? लहरा रही कहां जमुना है ? श्याम घटा घनघोर कहां है ?
सुन सुख देते थे कानों को ? 'द्विवेदी - काव्यमाला' पृ० ३६१ ।
हे भक्तवत्सल ! उन्हें उनमे बचाओ,
हस्तारविन्द उनके सिर पै लगाओ। 'द्विवेदीकाव्यमाला' पु०३६२/
६. यथा 'द्विवेदी-काव्यमाला' म संकलित 'जन्मभूमि' में ।
७ यथा 'द्विवेदी-काव्यमाला' में संकलित 'आर्यभूमि' और 'देशोपालम्भ' मे | ८ उदाहरणार्थ
हिन्दू मुसलमान ईसाई, यश गावे सब भाई भाई, सबके सब तेरे शैदाई, फूलो फन्तो स्वदेश |
'द्विवेदी - काव्यमाला' '१०४५३. ४५४ । कहा ? बता यह प्रश्न हमारा | प्राण जन्म मेरा है वहाँ
द्विवेदी
प० ४२०
यथा कवि हे स्वतंत्रते ! जन्म तुम्हारा स्वतंत्रता शूर देशहित तजते नहीं