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के क्रमिक इतिहास की रूपरेखा इस प्रकार है । भारतेन्दु युग के कुछ कवियों ने भारत के अतीत गौरव की ओर संकेत करके अभिमान का अनुभव किया, देश की दयनीयता का चित्राकन करके उसे दूर करने के लिए भगवान् से प्रार्थना की । द्विवेदी युग के अधिकाश कवियों ने अतीत की अपेक्षा वर्तमान पर ही अधिक ध्यान दिया, भगवान् से सहायतार्थ प्रार्थना करने के साथ ही आत्मवल का भी अनुभव किया । वर्तमान क्रान्तिवादी युग तो प्रस्तुत समस्या को लेकर अपने ही बल पर संसार को उलट देने के लिए कटिबद्ध है । इस विकासक्रम मे द्विवेदी जी की कविताएं भारतेन्दुयुग और द्विवेदीयुग की मध्यस्थ श्रृंखला की भाँति हैं। शासकों के गुणगान और भारत के सहायतार्थ ईश्वर से प्रार्थना करने में वे भारतेन्दु युग के साथ है । किन्तु अतीत को छोड़कर वर्तमान के ही चित्र खीचने में वे भारतेन्दु युग में एक पग आगे बढकर द्विवेदी युग की भूमिका में खड़े हुए हैं।
द्विवेदी जी की राजनैतिक या राष्ट्रीय कविभावना चार रूपी मे व्यक्त हुई है । पहला रूप शासको के गुणगान का है । 'कृतज्ञताप्रकाश' आदि रचनाओं में कुछ सुविधाएं देने वाली सरकार की मुक्तकंठ से प्रशंसा और हर्ष की इतनी वृत अभिव्यक्ति की है मानो किसी बच्चे को अभीष्ट खिलौना मिल गया हो । परन्तु ये कविताएं द्विवेदीयुग के पूर्व की हैं। अपने जीवन के प्रारम्भिक वर्षो मे द्विवेदी जी विदेशी सरकार के भक्त थे - यह बात 'चरित और चरित्र' अध्याय मे सप्रमाण कही जा चुकी है। इसके दो प्रधान कारण परिलक्षित होते हैएक तो भारतेंदु युग से चली आनेवाली राजभक्ति की परम्परा और दूसरे अंग्रेजी द्वारा देश में स्थापित की गई शान्ति तथा उन्हें प्रसन्न करके हिन्दी के लिए कुछ प्राप्त करने की भावना | राजनैतिक कविता के दूसरे रूप में द्विवेदी जी ने देश की वर्तमान अधोगति के प्रति क्षोभ प्रकट किया है ।" इस सम्बन्ध में एक विशेष अवेक्षणीय बात यह है कि उन्हो ने भारतेन्दु की मुकरियो या द्विवेदीयुग के राष्ट्रीय कवियों की भाति अंग्रेजो को देश की दुर्दशा का कारण नहीं माना है और इसलिए कहीं भी उनके अत्याचारों का निरूपण नहीं किया है उनकी राजनैतिक कविता का तीसरा रूप भारत के गौरवगान का है। इस भाव की अभिव्यक्ति मुख्यतः चार रूपों में हुई है । कहीं तो उन्होंने भारत के अतीत वैभव की महिमा का वर्णन
१. यथा-
यदि कोई पीड़ित होता है, उसे देख सब घर रोता है । देशदशा पर प्यारे भाई आई कितनी बार स्लाई
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