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है । उपदेशात्मक मुक्तका म नीति श्रादि का उपदेश देने के लिए मुक्त विचारा की निब धना की गई है, यथा-विनय-विनोद, "विचार करने योग्य बाते' आदि ।' द्विवेदी जी की कविता के तीसरे रूप प्रबन्ध मुक्तको में एक ही वस्तु या विचार का वर्णन होने के कारण प्रबन्धता
और प्रत्येक पद दूसरे से मुक्त होने के कारण मुक्तत्व दोनो ही एक साथ हैं, उदाहरणार्थ-- "विधिविडम्बना', 'ग्रन्थकार-लक्षण' अादि । भारतेन्दुयुग में चली आने वाली समस्यापूति की प्रवृत्ति ने द्विवेदी जी को मुक्तकरचना के प्रति प्रभावित नहीं किया । सम्भवतः इसका वास्तविक कारण यह है कि वे तादृश समस्यापूरक कवि-समाजो के निकट संपर्क में कमी रहे ही नहीं।
____ कतिपय गीता ने द्विवेदी जी की कविता का चौथा रूप प्रस्तुत किया । मौलिकता की दृष्टि
से इन गीतो के चार प्रकार हैं । 'भारतवर्ष में व संस्कृत के 'गीत गोविन्द से, 'वन्देमातरम्' में बंगला से और 'सरगौ नरक ठेकाना नाहि मे लोक-प्रचलित अाल्हे मे प्रभावित हैं। इस अंतिम गीत में प्रबन्धता होते हुए भी लोकप्रचलितगेयता के कारण इसकी गणना गीतो के अन्तर्गत की गई है । कहीं कहीं उन्होंने भारतीय परम्परा का ध्यान किए बिना ही स्वतन्त्र रूप से भी गीता की रचना की है । 'टेसू की टांग' और 'महिला परिपद् के गीत' इसी प्रकार के हैं । इनकी लय पर उर्दू का बहुत कुछ प्रभाव परिलक्षित होता है।" १. यथा
यौवन वन नव तन निरखि मूढ अचल अनुमानि । हठि जग कारागार म ह परत आपदा प्रानि ॥
___ --- द्विवेदी-काव्यमाला', पृ० ५ । २. मथा--- इष्टदेव आधार हमारे, तुम्हीं गले के हार हमारे, भुक्ति मुक्ति के द्वार हमारे, जै जै जै जै देश ॥
जै जै सुभग सुवेश ॥
द्विवेदी-काव्यमाला', प ० ४५४ । ३. यभा--- मलबानिल मृदु मृदु बहती है, शीतलता अधिकाती है, सुखदायिनि बरदायिनि तेरी, मूर्ति मुझे अति भाती है ।
वन्देमातरम् ॥
--'द्विवदी-काव्यमाला', प.० ३८३ । होत बनिबई आई हमरे, को अब तुमसे झूठ बताय, हमहूँ घिउ बरसन ब्यांचा है छोटी बड़ी बजारन जाय । हियां की बातें हियै रहि गई, अब आगे का सुनौ हवाल, गाउँ छोड़ि हम सहर सिधायन लागेन लिखै चुटकुला ख्याल ॥
'द्विवेदी-काव्यमाला', प.० ३८८ । ५, यथा- विद्या नहीं है, बल नही है. धन भी नहीं है, क्या से हुआ है क्या यह गुलिस्तान हमारा
द्विवनी का प. ३ ३