________________
१९४.] : . महावीर चरित्र । तरफ प्रसन्न हुए भायोंकी श्रेणियोंसे वेष्टित समवशरणको उपने प्राप्त किया । अर्थात् वह प्रियमित्र चक्रवर्ती अनेक भन्यों के साथ र समवशरणमें पहुंचा ।। ५२ ।। द्विगुणित हो गई है प्रशम संपत्ति ।। जिसमें ऐसी भक्तके द्वारा नम्र हो गया है उत्तमांग : शिर निस ऐसे उस चक्रवर्तीन चार निकायवाले देवोंसे सेवित और केवलज्ञान ही है नेत्र जिनका, स्तुति करने योग्य ऐसे अनंर में : जिनेन्द्र भगवानकी हाथ जोड़कर बंदना की ॥५२॥ इस प्रकार अशग कवि कृत वर्धमान चरित्रमें प्रियमित्रं चक्रवति ।
सम्भवो नाम चौदहवां सर्ग समाप्त हुशार
-
-
.:. पन्द्रह सम्। 'संसारकी अमे:--अनंत दुग्वस्थाको जानवर भक्तिसे नम्र
हुए पृथ्वीपालने हाथ जोड़कर जिनेन्द्र भगवान्में मोक्षमार्गक विषयों · प्रश्न किया । ऐमा कोनसा भव्य है जो सिद्धिके
ज हो! ॥ १ ॥ निश्चित हैं समस्त तत्व निनको ऐसे हितोपदेशी भगवान भिन्न भिन्न जातियोंवाले समस्त मध्य प्राणियों को मोक्षः । मार्गका बोध देते हुए अपनी दिव्यध्वनिके द्वारा स्थानको व्याप्त कर
इस तरहके वचन बोले ।। २ ॥ . ..... : सम्वदर्शन निर्मल-सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र है. चक्र • पाणे ! ये तीन मोक्षमार्ग हैं। मुमुक्षु प्राणियोंको इनके. सिवाय
और कोई या इनमें से एक दो मोक्षके मार्ग नहीं हो सकते । अर्थात्, येतीनों मिले हुओंकी एक अवस्था मोक्षका मार्ग है ॥३॥
..
.
.
.......!
..
...
.
.....