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पन्द्रहवाँ संग।
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तत्वार्षके श्रद्धानको सम्यक्त्व बनाया है, और इन्हीका-तत्वार्थों का जो निश्चय करके-पंशय, विपर्यय, अनध्यवसाय रहितपनेमे जो अबरोध होता है उसको सम्यग्ज्ञान कहते हैं, सैम परिग्रहोंसे सम्बन्धके छूटनेको सम्प्रनारित्र कहते हैं
४॥ लो में समस्त प्राणियों के हितका उपदेश देनेवाले इन्द्रादिकंके द्वारा. पूज्य. जिनेन्द्र भगवान्ने ये नव पदार्थ बनाये हैंजीव, अनीव, पुणे, पोप, आश्रा, बन्ध, “सर, निर्जरा, मोक्ष
६॥ इनमें से जीव दो प्रकारक हैं- सारी दुमरे मुक्त । इनका. सामान्य दोनों में व्यापनेवाला लक्षण उपयो।-चेनाकी परिगति-ज्ञानदर्शन है । इसके भी दों में हैं (ज्ञानदर्शन ) निमेंसे एकके ज्ञानके आठ. भेद हैं, 'मरे-दर्शक चार भेद हैं ॥६॥ जो संसारी नीय हैं वे योनिस्थान तथा गति आदिक नाना प्रकार के भेदोंसे अनेक प्रकारके बताये हैं । जो कि नाना प्रकारके दुःखोंकी दावानरसे युक्त जन्म मरणरूपी दुरंत-खराब है अंत निमका ऐसे अरण्यमें अनादिकालसे भ्रमण कर रहे हैं ॥ ७ ॥ वीतराग गिनन्द्र भगवान्ने ऐसा. स्पष्ट कहा है कि यह आत्मा समस्त तीनों लोकमें गति इन्द्रिय और स्थानके भेदसे तथा. इन ( जिनका आगे आगे चर्णन करते हैं:) मावोंसे शेष सुख और दुःखको पाता है ॥ ८ ॥ भाव पांच प्रकारके हैं-औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदयिक, पारणामिकं । सर्वज्ञदेवने इनको भीवका तत्व-स्वतत्व बाया है। . इनके कमसे दो नव अठारह "इक्कीस और तीन उत्तरभेद होते हैं
९॥ पहला भेट औपशमिक है । इसके दो भेद हैं-सम्यक्त्व । और चारित्र.। ये दोनों सम्बत और चारित्र तथा इनके साथ साथ