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________________ RANA ....... .....: ग्यारहवा सग। - [१५१ . डालो " इत्यादि अनेक प्रकारके दुर्वचन कहते हैं और बिल्कुल उसी तरह करते हैं.॥ ८॥" यह दुःख, देनेवाली गति कौनसी है?".". मैंने पहले-पूर्वजन्ममें कौनसा उप्रपाप किया है ?" " मैं भी कौन हूं." इसतरह कुछ क्षण तक विचार करके उसके बाद वहां उत्पन्न होनेवाला जीव विमंगावधिको पाकर सत्र वातः जान लेता है ॥९॥ वहाँक नारकी दूसरे नारकियोंको, अग्निमें पटक देते हैं, मुख फाड़कर चूंमा पिला देते है, टूटती हुई तथा उलटती हुई हड्डियोंका निममें घोर शब्द हो रहा है. इसतरहसे यंत्रों के द्वारा अनेक तरहसे पल डालते हैं, -11:१०॥ निरके नोंमें तीक्ष्ण वनमय सुइयां चुमोदी गई हैं ऐमा नरकमें उत्पन्न हुआ जीव आर्तनाद कर दीन विलाप करने छगता है। नारकियों का समूह उसके शरीरको नष्ट कर देता है। इसीलिये वह अनेकवार विचतनताको प्राप्त होता है ॥ ११ ॥ किनारके वज.समान नुकीले कंकड़ोंसे मिलक पैर फट गये हैं, स्वामाविक प्यासके मारें जिपके कंठ और तालु सुख गया है, हाथी और मकर तथा तलवारके द्वारा खंडित होनेपर भी विषमय जल, पीनके लिये वैतरणी नदीमें प्रवेश करता है ॥ १२ ॥ दोनों किनारों पर खड़े हुए नारक्रियों के समूहोंने रोकार जिसको उस वैत• रणी नदीमें बारबार.अवगाहन कराया है ऐमा वह जीव दुःखी होकर किसी तरह छेद--जगह पाकर · वज्रपमान ‘अग्निसे दहकते हुए पर्वतपर बढ़ जाता है ।।.१३ .. सिंह, हाथी, अजगर, व्याघ्र तथा ककपक्षी आदिकोंने, आकर जिसके: शरीरको नष्ट कर दिया हैं ऐसा वह नारको जीव कहाँपर. अत्यंत असह्य दुःखको पाका वि
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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