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१५० ] महावीर चरित्र । . . रंगमें रंगे रहने के कारण उसका मन स्वभावसे ही शांतिरहित था।' विना निमित्तके ही यमकी तरह कुपित होनेवाला मृखा न होनेपर: भी वह मदोन्मत्त हस्तियोंका वध कर डालता था ॥ २ ॥ रंधों-गुफाओंको प्रतिध्वनिसे पूर्ण कर देनेवाली उसकी गर्जनाको सुनकर हाथियों के बच्चोंका हृदय दहल जाता था या फट जाता, था। वे अवसर न होनेके कारण प्रियप्राणों के साथ साथ अपन: यूथों-समूहों-झुडोंसे भी निराश होनात थे ॥ ३ ॥ जो मृगमूह .. उस सिंहके नखोंके अग्र भागसे लम-नट होते होते न गये थे। सब किसी बाधा रहित दूसरे वनमें चले गये । यह सदाकी रीति . है कि सभी जीव उपद्रव रहित स्थानकी तरफ जाया . कोते हैं. : ॥ ४ ॥ खोटे भावोंको सम्बन्ध जिसका नहीं झूटा है ऐसा यह निर्दय सिंह अपनी आयुके पूर्ण होनेपर फिर भी नाकमें गया : जंतुको पहला असत-असमीचीन-दुःसमय फल रही है ।। हे मृगरान ! यह विश्वास कर-निश्चय सम्झ कि जो सिंह। नरकगतिको प्राप्त हुआ था वह तू ही है । अब, जिन दुःखोंको नरकोंमें प्राणी भोगता है उनको मैं सुनाता हूं तो तू सुन
कीड़ोंके समूहसे व्याप्त दुर्गधियुक्त हुंडक संस्थानवाले विद्रूप : शरीरको शीघ्र ही पाकर जहां उत्पन्न होते हैं उस जगहसे वाणी तरह नीचेको मुख करके वह प्राणी प्रजाग्निमें पड़ जाता है | जिनके हाथमें अति तीक्ष्ण और नाना प्रकारक हथियार लगे हुर हैं. ऐसे नारकी लोग दूसरेको भासे कांपता हुआ देखकर " जला: डोलो " "पका डालो या भून डालो ! " चीर डालो" " मार..
१ एक अंतर्मुहूर्तमें पर्यातिको पूर्ण करके।
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