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________________ १५२ ] महावीर चरित्र | श्राम लेनेके लिये सघन वृक्षोंकी तरफ जाता है ॥ १४ ॥ पर- अनेक प्रकारके तीक्ष्ण हथियारोंके समान पत्तोंको छोड़कर वे वृक्ष समुंह उसके शरीर को विदीर्ण कर डालते हैं तब सैकडों घावोंसे व्याप्त उस शरीरको भ्रमरसमूहों के साथ साथ दुष्ट प्रचंड कीड़े. काटने लगते हैं ॥ १५ ॥ अत्यंत कठोर शब्दोंके द्वारा कानोंको ति करनेवाले काले कौए उसके दोनों नेत्रोंको अपनी वज्रमय: चोंचोंसे चोथते हैं पर अग्निकी शिखाओंस उनके भी पंत्र जल जाते हैं ॥ १६ ॥ कोई २ नारकी जिसका मुख फट गया है ऐसे किसी नारीको विषमय जलसमूहसे भरी हुई वैतरणी नदीमें डाल कर कठोर या भरी और तीक्ष्ण मुखवाले मुद्ररोके प्रहारों से चूर्ण करते - कूटते हुए प्रचंड अग्-िके द्वारा पकाते हैं | १७ ॥ नाना फिराना उछालना भादि अनेक प्रकारकी क्रियाओंके द्वारा ओधानीची (ऊंची नीची ) शिक्षाओंपर पटककर पीस डालते 1. कोई २ बड़े भारी यंत्र में ( कोलू आदिक में ) डालकर शरीरको आरेसे चीर डालते हैं ॥ १८ ॥ प्रचंड अग्निसे व्याप्त वज्राय सूप' ( घरिया - धातुओंके गटानेका पात्र ) में पड़े हुए लोहेके संतप्त रसको पीकर - पीने से जिसकी जीभ गिर गई है और तालु नष्ट हो गया है ऐसा वह जीव वहाँपर मांसप्रेमके- मांसभक्षके फो याद करता है । अर्थात जब नरकोंमें लोहेके गरम २ रसको पीता है तत्र जीवको याद आती है कि पूर्वभवमें मैंने जो मांस खाने से प्रेम किया था उसका यह फल है ॥ १९॥ जलती हुई अंगनाओंपुतलियोंके साथ शीघ्रता से आलिंगन करनेसे और वक्षःस्थल में स्तनोंकी जगह वज्रमय मुद्गरोंके प्रहारसे भग्न हुआ जीव नरक में नि " ·
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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