________________
७२
भगवान महावीर। देवीने जो इन देवियों के प्रश्नों का उत्तर दिया था, उससे उनके ज्ञानकी विद्वत्ता टपकती है और गर्मस्य दिव्य वालकका प्रभाव झलकता है। वे पूछती कि संसारमें सत्पुरुष कौन है ? तो रानी उत्तरमें कहतीं थीं कि जो धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष पदार्थोको सिद्ध कर, मोक्षमें विराजमान होवे वह सत्पुरुष है और कायर वह है जो मनुष्य जन्म पाकर भी धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष पुरुषार्थीको सिद्ध नहीं करता । और पूछती कि कौनसा मनुष्य सिहके सनान उनत है और कौनसा नीच है ? माता कहतीं कि जो मनुष्य इन्द्रियों के साथ र कामरूपी दुर्घर हाथीको मार मगाते हैं वे सिह समान हैं। और जो सम्यक् रत्नत्रय धर्मको पाकर उन्हें छोड़ देते हैं वे नीच है। एवं विद्वान वह है जो शास्त्रोको जानकर पाप, मोह और बुरे काम नहीं करतेः विषयोमे आसक्त नहीं होते। और जो शास्त्रोंको मानते हुए भी पाप, मोह, इंद्रियोकी आसक्ति और कुमार्गको नहीं छोडते है वे मूर्ख है। तथैव ककि नाश करनेवाले और संसारको पूर्ण करनेवाले तप, धर्म, व्रत, दान, पूजा, उपकार आदि कार्योंको गीघ्र कर बलना चाहिए। छिपकर हिंसादिक पाप या अनाचारका सेवन करना ही मनुप्योके हृदयके लिए कठिन शल्य है। रानीची विद्वत्ता इस वार्तालापसे माफ टपकती है।
निशलादेवीके गर्भ में जिम समय भगवान महावीर स्वामीका जीव आया था. उस समय उनको रात्रिक अभाग पूर्ण होने उपरान्त प्रात कालके कुछ समय पहिले अन्य तीनोंी मातासरी तरह मोलह शुभ संकेतक भूचक स्वप्न दिखाई पड़े थे । प्रातः उठकर रानीने महाराज सिद्धायक निकट ना दिलत नावसे यह