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________________ (३) सम्य संसारके समक्ष उपस्थित हो रहा है। संभव है कि जबतक आगामी में कोई प्रखर विद्वान इस विषयमें अपनी मूल्यवान लेखनीको अविश्रान्त श्रम नहीं दे, तबतक मेरा यह प्रथम बाल - प्रयत्न उक्त आवश्यक्ताकी पूर्ति करने में सहायक हो । सर्वोपरि भगवान महावीर के संबंध में जो तरह २ की कल्पितविचार- विभ्रांतियां और थोथी मिथ्या किम्वदंतियां प्रचलित हैं उनका निराकरण करना इसलिए और भी आवश्यक होगया है कि उनके कारण विद्वत्समाज जैनधर्मका अध्ययन करना अथवा उससे मामूली जानकारी ही प्राप्त करना अनावश्यक समझती है । इन भ्रमपूर्ण विचारोंकी उत्पत्तिका मुख्य कारण प्रखर जैन साहित्यको समुचित रीतिमें प्रकट प्रकाशमें नहीं लाना ही कहा जा सक्ता है ! अतएव यदि आधुनिक प्रामाणिक ढंगपर जैन सिद्धांत और इतिहास ग्रंथ लिखे जांय तो यह मिथ्या-भ्रम स्वयं ही काफूरवत् उड़ जांय, किंतु भारतके प्राचीन इतिहासके सम्बन्धमें जो कुछ भी प्रकाश आज तक प्रकट हुआ है वह अधिकांश में योरुपीय विद्यानोके साधु-श्रमका फल है । प्रथम ही प्रथम योरुपीय विद्वानोंनें भारतवर्षके चिषयमें ज्ञान प्राप्त करनेके जो कुछ प्रयत्न किए थे वह बहुतायत से ब्राह्मण और बौद्धग्रन्थोंके आधारसे किए थे । इन विधर्मी ग्रन्थों में स्वभावतः जैनधर्मके विषयमें यथार्थ वर्णन नहीं था; क्योंकि मध्यकालसे इन भारतीय धर्मोौमें आपसी प्रतिस्पर्धा भी खूब चली आरही है । फलतः ब्राह्मण और बौद्ध श्रोतोंसे प्राप्त अधूरे ज्ञानके कारण इन विदेशी विद्वानोने यह मत निश्चित कर लिया था कि जैनधर्म बौद्धधर्मका बिगड़ा हुआ रूप है और
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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