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(४) भगवान महावीर कोई वास्तविक व्यक्ति नहीं थे !! परन्तु, यह भ्रमपूर्ण व्याख्या अधिक दिन टिक नहीं सक्ती थी। सत्यका प्रकट होना अवश्यम्भावी था। नर्मनीके डा० जैकोबी सदृश विद्वानोंने जैन शास्त्रोको प्राप्त किया। और उनका अध्ययन करके उनको, सम्यसंसारके समक्ष प्रगट भी किया। यह श्वेताम्बरामायके अंग ग्रंथ हैं। और डॉ० जैकोबी इन्हीको वास्तविक जैन श्रुत शास्त्र समझते हैं। इस भ्रममय श्रद्धानके होते हुए भी डॉ जैकोबी के इस उत्तम अमके कारण उक्त-भ्रम-मूलक व्याख्या निर्मूल होगई है और प्रमाणित हो गया है कि जैन धर्म एक अतीव प्राचीन धर्म है
और भगवान महावीर म० बुद्धसे भिन्न एक वास्तविक व्यक्ति थे। ___यद्यपि इन उदार सत्यानुवेषी विद्वान् महोदयोंके मूल्यमय परिश्रमसे भगवान महावीर और जैनधर्मके अस्तित्वकी खाधीनता
और प्राचीनता प्रकट होगई है। परन्तु अब भी सभ्य संसारके मध्य यही दृढ़ श्रद्धान घर किए हुए है कि जैनधर्मको हिंदूधर्मके विपरीत सामाजिक क्रांतिरूपमें भगवान महावीरने ही म० बुद्धके साथ २ चलाया था और दुःखकी बात तो यह है कि इसी व्याख्याकी पुष्टि अधिकांशमें हमारे स्कूलों और कॉलिजोके पठनकमके इतिहास ग्रन्थोसे भी होती है । अतएव इस प्रकार लोगोंको
#Not only Tacobi but other scholars also believed that Jainism far from being an off.hoot of Buddhism, might have been the ear licst of home religions of India. The simplicity of devotion and the homely prayer of the Tan without the intervenition of a Bmlımın yould certain add to thestrength of the theory so rightly mpheld lhy Jacobr."
(Scc the Studies in Sesath Indian Jainism I't 1 p 9).
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