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लिच्छावाय भवां और उनका गण-राज्य। ६१ थे। उनके दरबारका कार्यक्रम इस प्रकार बौद्धग्रंथोंसे जाना जाता है। पहिले उनमें एक 'आसनपन्नापक' नामक अधिकारी चुना जाता था। वह अवस्थानुसार आगन्तुकोंको आसन बतलाता था। अब एकत्रित दरवारमें एक प्रस्ताव उपस्थित किया जाता था। इस उपस्थित करनेको 'नात्ति' (ज्ञाप्ति) कहा जाता था। नात्तिके पश्चात् प्रस्तावकी मंजूरी ली जाती थी, अथवा रक्खा जावे या नहीं, यह प्रभ एक दफेसे तीन दफे तक पुछा जाता था, और यदि इसपर सब सहमत होते थे, तो वह पास होजाता था । और यदि विरोध खड़ा होता था तो वोट लेकर निर्णय किया जाता था। जो मेम्बर अनुपस्थित होता था, उसका भी वोट गिना जाता था। कोरम पूरे करनेका भी ख्याल सदैव रहता था। इनमें नायक, चीफ मेजिस्ट्रेट भी होते थे, जो लिच्छावियोंकी राज्यसत्तासम्पन कुलों द्वारा चुने जाते थे। इन हीके द्वारा संभवतः दरबारमें निश्चित प्रस्तावोको कार्यरूपमें परिणत किया जाता होगा। इनमें कितनेक मुख्य राजा थे, उपराजा थे, और भण्डारी भी थे, सेनापति भी थे। इनकी संख्या ठीक अन्दाज नही की जासकी। इन दरवारोंकी कार्रवाई ४-४ राजा अंकित करते जाते थे। वे लेखकों Recondersके रूपमें थे। न्यायालयोंका प्रवन्ध इस प्रकार था। संघके राजाओके समक्ष अपराधी लायाजाता था। वे उसे विनिश्चयमहामानस के सुपुर्द करदेते थे जो उसके अपराधकी जांच पड़ताल करके निर्णय करते थे। यदि अपराव प्रमाणित नहीं हुआ तो अपराधीको छोड़ देते थे। और पदि प्रमाणित हुआ तोवह उने व्यवहारिक के सुटुंद कर देते , जो कानून और रमने जानकार होते थे