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भगवान महावीर ।
घोडों ( हुण्डियोके भुगतान ) का खूब प्रचार था । (See The Coins of Incis P. 15) उस समयके लोग बहुतायतसे ' गावोमें रहते थे, और नगरोंकी संख्या इनीगिनी थीं। पर नग
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रोनें उस समय जनता के आरामके लिए विशेष प्रकार की तडाग वापी स्नानागार आदि सुखद सामित्री प्राप्त थीं. और गृह आदि उत्तम कारगरीके परिचायक दो दो तीन तीन मञ्जिलके बनते थे । हाँ ! उस समय जुल्म और अत्याचार भी नहीं होते थे । चोरीका
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तो नामविशान तक नही था । विद्याका भी खूब प्रचार था। तक्षशिला विख्यात विश्वविद्यालय था । इतनी सुसमृद्धिशाली दशा होनेपर भी
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लोग विलासिताप्रिय नहीं थे; र्बल्कि मिहनती और सरल स्वामाची थे। ग्रामीण सीधा सादा जीवन व्यतीत करते थे ।। See The Kslytriya Clans in Buddhist India P. 67
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तवकी राज्यनैतिक स्थिति भी एक अनोखा ही दृश्य दिखकारही थी, लोगोंक स्वतंत्र भावोको दर्शा रही थी । एक ओर तो प्रजातंत्र अपनी स्वाधीनताका प्रभाव दिखा रहे थे । और 1 गंगाकी दूसरी ओर राजा लोग अपनी शानकी आन जंतला रहे थे और नीति पूर्वक अपनी प्रजापर शासन कर रहे थे। प्राचीन यूनान जैसी हाजत होरही थी । जेन, बौद्ध और ब्राह्मण ग्रन्थोंसे पता चलता है कि उस समय सोलह राजा अपने राज्य में शासनाधिकारी थे. इनमे मुख्य वह थे, जिनसे श्री महावीरस्वामीका विशेष सम्बंध था। कौशल राज्यकी राजधानी श्रावस्ती या अयोध्या थी, यही राज्य आजकलका अवध प्रांत है। दूसरा मुख्य राज्य मग था जो कि आजकलका दक्षिण विहार हा नारता है।