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तत्कालीन परिस्थिति। ईसाके पूर्वकी पांचवीं और छठवीं शताब्दियां मानव जातिके इतिहासमें अपूर्व शताब्दिया गिने जाने लायक हैं। उनका प्रभाव चिरस्मरणीय है । इन शताब्दियों में चारों ओर संसारभरमें हलचल मच गई थी। भारत ने उस समय भगवान महावीर और म. बुद्ध प्रभृति महात्माओंने जन्म धारणकर मानवोंका उपकार किया था।
भारतकी दशा उस समय बड़ी मार्मिक थी। उस समयकी आर्थिक, राज्यनैतिक, सामाजिक और धार्मिक परिस्थिति बडी विचित्र होरही थी, नए २ मन्तव्य, नए २ सिद्धान्त लोगोंको बतलाए जारहे थे और लोग खुशी २ उनको अपनालेते थे।
उस समयकी आर्थिक दशा अवश्य अबसे लाख दर्ने अच्छी थी। हमें बौद्धग्रन्थोंके साथ २ जैनग्रन्थोंके वर्णनोंसे उस समयकी आर्थिक दशाके समृद्धिशाली होनेका पता चल जाता है । आजकलकीसी दरिद्रता उस समय भारतमें नामको भी नहीं दिखाई पड़ती थी। मनुष्योंको खानेपीनेकी कमी नही थी। दास और दासीके सिवाय और कोई मजदूरी नहीं करता था। छपि ही मुख्य व्यवसाय था, पर शिल्पका भी अभाव नहीं था। विविधर कारकी कलाओंका प्रचार ग्राम २ में था। लोग चैनसे रहते थे। रोजगार दूर दूर देशोंसे होता था। चीन, फारस, लंका आदि देशाके व्यापारीगण यहां व्यापार करने आते थे, ऐसे व्यापा:योकं सफर करनेका विवरण भी हमको मिलता है। उस सन्यके सिक मिले हैं, उनसे प्रमाणित होता है कि उस समय लेनदेनजिसकी तरह नकदका व्यवहार था और सागमें शादी