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भगवान महावीर।
AAMRAPARA
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जैनधर्मका महत्व और उसकी
स्वाधीनता
"There is very great ethical value in Jainism for men's improvement. Jainisru is a very original, independent and systematical doctrine. It is more simple, more ri:b and varied than Brahmanical Systems and not negativa like Budhism."
-Dr. A. Guirncot भगवान महावीरने जिस धर्मका पुनः उपदेश दिया था उसका हिन्दूधर्मसे सम्बन्ध हम पहिले देख चुके हैं। अब उनके जीवन कालका वर्णन करनेके पहिले उनके धर्मक महत्त्व और स्वाधीनताका दिग्दर्शन कर लें। डॉ० ए० गिरनाट साहब फ्रान्सके बड़े विद्वान हैं। आप इस विषयमें कहते हैं कि___“मनुष्योंकी उन्नतिके लिए जैनधर्ममें चारित्र सम्बन्धी मूल्य बहुत बड़ा है । जैनधर्म एक बहुत असली, स्वतंत्र और नियमरूप धर्म है । यह ब्राह्मण मतोकी अपेक्षा वहुत सादा, बहुत मूल्यवान तथा विचित्र है। और बौद्धके समान नास्तिक नहीं है।" इसके
अतिरिक्त स्वयं जैनधर्मका अव्ययन अन्य विविध दर्शनोसे तुलना .करके करनेसे उसकी महत्ता और स्वतंत्रता प्राट करता है । जैन'धर्म स्वयं एक पूर्ण मत है। प्राचीनसे प्राचीन जमानेसे ही यह थोये कोरे क्रियाकाण्ड (Ritualism)के खिलाफ रहा है। जैनधर्मने सांख्यदर्शन जैसे अन्य भारतीय दर्शनोंके समान ही वैदिक यज्ञ