________________
अवशेष तीर्थंकर ।
३३
नामक छोटीसी वस्ती है । दर्पणमें मुंह देखते वैराग्य उत्पन्न होनेसे अपने पुत्र बरचंद्रको राज्य दे तपश्चरणको गए थे। दतमुनि आदे ९३ गणधर थे । और बहुतसे मुनि आर्थिकाऐं आदि सब तीर्थङ्करोंकी भां ते इनके संघ भी थे । चिन्ह अर्धचंद्राकार था। चंद्रप्रभकाव्यमें उत्कृष्ट भाषाशैलीसे आपका चरित्र वर्णित है ।
(८) भगवान पुष्पदंत - नौवें तीर्थंकर कौकंदीपुरसें हुए थे । आपके पिता महाराज सुग्रीव थे। और माता जयरामा थी । पुत्र सुमतिको राज्यभार सौंप मुनि होकर केवली हुए और शिखरजीसे मोक्षको गए । सपल पुरमें पुष्पमित्रके यहां आहार हुआ था । मकरका चिन्ह है ।
(९) पगवान शीतलनाथ - दसवें तीर्थकर हुए थे। हजारीबाग जिलेमें भद्दलपुर कुलहापहाड़ के पास आपका जन्म स्थान है । और 1 राजा दृढ़रथ वहांके राजा इनके पिता थे । रानी सुनंदा थी । आपका विवाह हुवा था । अरिष्टनगरके राजा पुर्नवसुके यहां आहार लिया था । चिन्ह श्री उत्सवृक्ष है ।
(१०) ग्यारहवें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ वर्तमानमें वनारसके निकट अवस्थित सिहपुरके महाराज विष्णु और रानी नंदाके यहां उत्पन्न हुए थे । गोत्र इनका इक्वाक काश्यप था । पुत्र श्रेयंकरको राज्य दिया था । कुंयु आदि ७७ गणधर थे । चिन्ह गेंड़ाका है। प्रथम नारायण तृष्टष्ट और चलदेव विजय अब ही हुए थे ।
(११) बारहवें तीर्थकर वँ सपूज्य थे। चंपापुरीके ईदवाकवंशीय काश्यप गोत्री राजा वसुपुज्य पिता और रानी जयायति