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भगवान महावीर। (२) श्री अभिनंदननाथ-चौथे तीर्थकर अयोध्याके इक्वाक वंशीय नृपति संवर रानी सिद्धार्थाके पुत्र थे। राज्य लक्ष्मी और गृहलक्ष्मीका उपभोगकर आप दीक्षित हो सर्व तीर्थंकरोंकी भांति उपदेश दे सम्मेदशिखरसे मुक्त हुए थे। वजनामि आपके मुख्य. गणधर थे। आपका चिन्ह बन्दरका है। . - (१) श्री सुमतिनाथजी-पांचवे तीर्थकरके पिताका नाम राजा मेघस्थ और माताका सुमंगल देवी था। जन्म स्थान अयोध्या था। वंश व गोत्र पूर्व तीर्थकरकी भांति था । विवाह और राजभोग किया था । दीक्षा लेकर पद्मभूपके सौमनसपुरमें प्रथम आहार लिया था। चामर आदि ११६ गणधर थे। शिखरनीसे मुक्त हुए। आपका चिन्ह क्रौंचका था।
.(९) श्री पद्मप्रभू-छट्टे तीर्थकर कौशांबीपुरके नरेश मुकुटवर रानी सुसीमाके पुत्र थे । वंश व गोत्र इनके पहिले तीर्थकरके थे। राजा सोमदत्तके आहार लिया । बचचामर मुख्य गणधर था। समस्त आर्यखंडम विहारकर अन्य तीर्थकरोंकी भांति शिखरजीसे निर्वाणको गए थे। चिन्ह कमलका था।
(६) श्री सुपार्व-सातवें तीर्थकर काशीमें हुए थे। वहांके अधिपति आपके पिता सुमतिष्ट नामक थे और माता सुसीमा थीं। सोमखेटके राजा महेन्द्रदत्तके आहार लिया । बल आदि ७५ गयपर थे। सम्मेदशिखर मोक्षस्थान है । चिन्ह स्वस्तिका है। यजुबंद २९-१९ में आपका उल्लेख है।
चन्द्रप्रभ स्वामी अष्टम तीर्थडर चन्द्रपुरीके महाराज महासेन, रानी लक्ष्मणाके सुपुत्र थे । बनारस के निकट चन्द्रपुरी