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. . अवशेष तीर्थंकर। ग्रहण किया था, पिताके मुनि होजानेपर एक काल पर्यन्त विशाल राज्य किया था। अकस्मात् वनक्रीड़ा करते एक फूलको खिलते और नष्ट होते देख आपको वैराग्य होगया था। तत्क्षण आपने दिगम्बरीय दीक्षा ग्रहण कर ली थी। तपश्चरणके पश्चात प्रथम आहार आपने राजा ब्रह्मदत्तके यहां लिया था। 'तपश्चरणके १२ वर्ष उपरान्त आपको केवलज्ञान प्राप्त होगया था। आपने तब विहारकर धर्मका उद्योतन किया था। आपके संघमें ९० गणधर
और एक लाख मुनि थे व तीन लाख आर्यिकाएं थीं। उस समय अजितप्रभूके काका विनयसागरके पुत्र सगर चक्रवर्ति भारतवर्षाधिपति थे। इनके पुत्र भागीरथ इनके उत्तराधिकारी हुए थे। सगरके मोक्षलाम करनेपर इन्होने भी सन्यास ग्रहण किया था। भागीरथने कैलाश पर्वतपर गंगाकिनारे तप धारण किया था जहांसे उनको केवलज्ञान होकर मोक्षलाम हुआ। इस अवसर पर देवोंने इनका अभिषेक किया सो वह पानी गंगानीकी धारमे मिला; जिसके कारण आजतक गंगाजल पवित्र माना जाता है। अनितप्रभू सम्मेदशिखरसे मोक्षको प्राप्त हुए थे। चिन्ह हाथीका है इनका उल्लेख यर्जुवदने है।
(२) श्रीसंभवनाथ-तृतीय तीर्थकर थे। ये अजित प्रभूके मोक्ष , प्राप्त करनेके एक अति दीर्घकाल पश्चात् हुए । अयोध्याके इक्ष्वाका वशीय, काश्यप गोत्री राजा दृढ़रथराय वा जितारि रानी सुपेणाके सुपुत्र थे । आपका विवाह हुआ था। राज्य भोगकर दीक्षा ग्रहण कर' मुक्त हुए थे। चारुष्णादि १०६ गणधर थे। सम्मेदशिखरपर आपके स्मृति चरणचिन्ह मौजूद । चिन्ह घोड़ेक्न था । ::