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________________ भगवान महावीर । (और अन्यत्र जैसे पहिले कह चुके 'हामस्वर्थ हिस्टरी आफ दी वरुडके भाग २ पत्र ११९० में कहा गया है कि जैन नातपुत (श्री-महावीर वईमान ) से पहिले कितने ही तीर्थहरोंका होना मानते हैं । अस्तु, इन वास्तविक २४ तीर्थहरों से तीनका वर्णन पहिले वर्णित किया जाना है। और अन्तिम तीर्थदर श्री महावीर भगवानका इस पुस्तकमें अगाड़ी पूर्णरूपेण आयगा । अवशेषमें २० तीर्थहरोंका वर्णन इस प्रकार है नो क्रमवार दिया जाता है: (१) श्री अजितनाथजी-दूसरे तीर्थकर थे। आपको जन्म इक्ष्वाक वंशमें श्री ऋषभदेवके कुलमें अयोध्या नगरीमें प्रथम तीर्थरके निर्वाण प्रातिके एक दीर्घकाल पश्चात हुआ था। पहिले राजा धरणीधर अयोध्याके नृपति थे। उनके पुत्र विदसंजयदेव हुए। इनकी रानीका नाम इन्दुरेखा था। इन्दुरेखाके गर्नसे राजा नितशत्रुका जन्म हुआ था | राना नितशत्रुका विवाह पोदनपुरके राजा व्यानंदकी पुत्री विजयासे हुआ था। इन्ही राजदम्पति जितशत्रु और विजयाके अजितनाथनीका जन्म हुआ था। गममें आते ही माताको बोड़स शुभ स्वम हुए थे जैसे कि हर तीबदरकी माताको होते हैं। और गर्भ-जन्म-तप-जान-नोक्ष कल्याणकों (शुमा वसरों) पर देवीने मार उन्मव मनाए थे ले मिचे प्रत्येक तीसरके उक्त अवारों पर करते हैं। जिस समय अनितप्रमूने जन्म लिया था उस समय राग जितमनुसमन्त रानामीको परास्त फरलमें समर्थ हुए थे। इस उपलसमें इन्होंने अपने पुत्र का नाम अजित रस्ताया। युवावस्था में इन्होंने भी दो रानन्यामोशे पानि
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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