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. . . भवो तार ।
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(८) अवशेष तीर्थकर। ॐ त्रैलोक्यप्रतिष्ठितान चतविशति तीर्थंकरान्. ऋषमाया वर्षमानान्तान सिद्धान् शरणं प्रपद्ये ।।
किन खास अंक २०४८ उपर्युक्त पत्रमें कहा गया है कि उक्त श्लोक ऋग्वेदका है। यदि वास्तवमें यह ऐसे ही है तो २४ तीर्थकरोंके अस्तित्वको स्वीकार करनेमें यह प्रबल प्रमाण है। इसके अतिरिक्त ऋग्वेद अष्टक २० ७ वर्ग १७ में भगवान अर्हनको स्मर्ण किया है, जिससे प्रकट है कि श्री महावीर व पार्श्वनाथ स्वामीके पहिले अन्य तीर्थकर अवश्य थे। स्वयं श्री मुनसुवृतनाथ भगवानके समकालीन श्री रामचंद्रने "श्री निन जैसी शांतिकी वाञ्क्षा की थी।" (देखो वृहदयोगवशिष्टम् सर्ग १५ वर्ग ) उधर आधुनिक विद्वानोंने जैनियोंके २४ तीर्थंकरोंके अस्तित्वको स्वीकार किया है। जैसे कि मेनर-जनरल जे० जी० आर० फरलामा, एफ० आर० एस० ई। इत्यादि जो अपने १७ वर्षके अध्ययनके पश्चात् प्रकट करते हैं। (See short studies in the science of comparative' Religions. pp. 248-4):
"आर्य लोग गंगा बल्कि सरस्वती तक पहुंचे भी न थे कि उसके बहुत पहिले नैनी अपने मुख्य २२ बौद्धों वा सन्तों अथवा तीर्थकरों द्वारा सिखाए पढाए नाए चुके थे। ईसाके पूर्वकी 1-९वीं शताब्दिक २३ ३ बौद्ध पावके 'पहिले ही; जो अपने पूर्वागामी कालन्तरसे अवस्थित पवित्र ऋषियोंको नानते थे।"