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भगवान महावीर।
श्री नेमिनाथजी। "हरिवंशकेतुरनवयविनयदमतीर्थनायकः । शीलजलाधरभवो विभवस्त्वमरिष्टनेमिशिन-,
कुकारोऽजरः॥
.. बृहतस्वयभूस्तोत्र। अर्थात् हरिवंश (विष्णुवंश) का केतु, निर्दोष ज्ञान, दर्शन, तप, चारित्र 'उपचाररूप पंच विनय या पञ्चेन्द्रिय विजय करनेवाले शास्त्रके खामी, (प्रणेता) शीलधर्म पालनेमें समुद्र खरूप, संसार रहित, अजर, निनोंगें हाथीके सदृश प्रधान आदि विशेषणों सहित अरिष्ट नेमि तीर्थकर हुए।" गुजरातके प्रख्यात यादववंश हरिवंशमें ही आपका जन्म हुआ था। आप अपने अनुगामी तीर्थकर श्री पार्थनाथसे ८४००० वर्ष पहिले हुए थे। राना समुद्रविनयके पुत्र थे। जिस समय आपका पाणिग्रहण राना उग्रसेनकी पुत्री राजमतीसे होने जा रहा था उस समय मार्गमें श्वसुर रानप्रसादके निकट आपको बंधनमें पड़े हुए पशुओंके आतपूर्ण शब्द सुन पड़े। पूछने पर ज्ञात हुआ कि यह पशु भोननके निमित्त पकड़े गए थे। अस्तु मूक पशुओकी इस विलबिलाहटने परम दयालु नेमनाथके पवित्र युवक हृदयमें दयाका उद्रेक बह निकाला। प्रभूने उन निरापराध पशुओंको बन्धनमुक्त किया और आप अपने राज्यामूषण उतार समारसे विरक्त हो सांसारिक विषयभोगोंकि लिए रानकुमारी रानमतीसे पाणिग्रहण न कर मोमलल्मीरूपी, परमानन्द भदायिनी परमसुंदरीको प्राप्त करने के लिए कठिन तपन