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'भी मिनाथजी । रणका आराधन दिगम्बरीय दीक्षा ले करने लगे। इनकी भावी सहचरी राजमती भी अपने भाविके निकट जार्यिका होगई थीं। अन्तमें नेमनाथजीने गिरनार पर्वतसे मोक्षरूपी कन्याको वराया और राजमती भी वहींसे स्वर्गको सिधारी थी। इनके स्मृति चिह्नमें गिरनार पर्वतपर चरण चिह्न और गुफा जिसमें राजमती रहीं थीं, मौजूद हैं। ___ कहा जाता है कि अर्जुनके परम हितैषी मित्र भगवतीताके कृष्ण नेमनाथके भतीजे थे । हिन्दूशास्त्र विशारद जैनियों यदि चाहें तो इन २२वें तीर्थकरके विषयमें हिन्दूशास्त्रोंका अनुशीलन करनेसे बहुत कुछ प्रकाश पासते हैं । और इतिहासपर रोशनी डाल सकते हैं। ___यजुर्वेद अध्याय ९ मंत्र २५ में इनके विषयमें इस प्रकार एक श्लोक अवश्य दिया है जैसा कि मासिक पत्र "दिगम्बर जैन" के वीर सं० २४४३ के खास अङ्कके एष्ट ४८ Aसे विदिरा है:वाजत्यनु मसव आवभूवेमा चविश्वभुवनानिमत:/सनेमिराजा परियाति विज्ञान प्रजांपुष्टियानोnt
अस्मे वह . अर्थात् ( स्वाहा ) यह अर्चन उन ( अस्मै ) प्रभू नेमिनाथ (२२वें तीर्थकर ) को ( समर्पित है, नो (राजा) केवलज्ञान आदिके प्रभू (च) और ( विद्वान ) सर्वज्ञ (हैं) (स) जिन्होंने वर्णित किया है ( आवभूव) उसका यथार्थ रूपमें (सर्वशः) और ज्ञानके प्रत्येक योग्य साअमस्यके साथ ( वानस्य) नो (ज्ञान) एक व्यक्तिके आत्माका है (विश्वभुवनानि ) इस लोकके प्रत्येक जीवधारीको और (उनके हितैषी उपदेशसे ) (पुष्टि) आत्मज्ञानकी शक्ति (नु) तत्क्षण (वर्षयमानों) बढ़ती है (प्रना) जीवोंमें।