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श्री ऋषभदेव ।
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धर्म जैनधर्मका यथार्थस्वरूप अगाड़ी अवलोकन करेंगे। हिन्दुओंक बराहपुराण में भी ऋषभदेवका उल्लेख है :
तस्य भरतस्य पिता ऋषभः हेमाद्रेर्दक्षिणं वर्ष महद्भारतं नाम शशस ॥ तथैव अग्निपुराणमें कहा है :
" "ऋषभो मरुदेव्यान्ज ऋषभाद्भरतोऽभवत् । भरताद्भारतं वर्षे भरतात्सुमीतस्त्वभूत् ॥
योरोपीय पूर्वी भाषाभाषी विद्वानोंमें मि० जे० स्टीवेन्सन ! इस विषयको स्वीकार करते हैं कि ऋषभदेवके विवरण हिन्दू और जैनशास्त्रों में समान रीतिपर हैं। वह क्षत्रिय थे और उनके ज्येष्ठ पुत्र भरतके नामसे ही भारतवर्ष नाम इस देशका पड़ा है ।
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डॉ० फुहररने मथुराके स्तूपका अध्ययन करके निश्चय किया कि एक अति प्राचीन समयमें श्री ऋषभदेवको अर्चन आदि अर्पित किए गए थे ।
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इन सब बातोंसे यह जाना जा सक्ता है कि भारतीय आर्य संभ्यताके प्रथम संस्थापक श्री ऋषभ भगवान हैं । और इन्होंने जैनधर्मकी उत्पत्ति इस युगमें की थी । यह केवल भ्रम है कि श्री महावीरखामीने जैनधर्मको स्थापित किया था । अथवा २२ वें तीर्थंकर नेमिनाथ वा २३ वें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ जैनधर्मक प्रणेता थे ।
जैनधर्मके संस्थापनका श्रेय जब २२ वें व २३ वें तीर्थकरौंको भी श्री महावीर भगवानके समान ही दिया जाता है, तो आइए उनके विषयमें भी हम खास तौरपर श्री महावीर भगवानके साथ २ कुछ ज्ञान प्राप्त कर लें ।
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