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भी ऋषभदेव।
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श्री ऋषमदेव। ." सयम्भुग भूतहिनेन भूतले.
खमञ्जमज्ञानविभूतिपक्षुषा। विराजितं येन विधुन्वता तमः क्षपाकरेणेव गुणोत्करैः कः ॥",
- इहत्त्वयंभूतोत्र।। विक्रमकी दूसरी शताब्दिमें होनेवाले श्रीमद्भगवद्वादिगजकेसरी स्वामी समन्तभद्राचार्य प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेवके विषयमें कहते हैं कि "दूसरेके उपदेश विना ही अपने आप मोक्षमार्गको जानकर अनन्त चतुष्टयरूप होनेवाले तथा परम दयालु होनेसे प्राणियोंको मोक्षसुखके प्रथम प्रदर्शक अतएव हितकारक, और यथावत् ( ठीक २) सम्पूर्ण पदार्थोको साक्षात् करनेवाली ज्ञानलक्ष्मीरूप नेत्रवाले, और सन्यदर्शनादि गुणोंके समूहरूप किरणोंसे ज्ञानावरणादि कर्मान्धकारको अथवा ज्योंके त्यो स्थित पदार्थोके प्रकाशक गुण समुदायरूप किरणोंके द्वारा प्राणियोके अज्ञानान्धकारको हरनेवाले चन्द्रमाके समान श्री आदिनाथ (ऋषभदेव) भगवान इस पृथ्वीपर सुशोभित हुए।" ___ इस भरतक्षेत्रमें अविसर्पिणीके प्रारंभमें जब भोगभूमिका लोप होगया तब कर्तव्यबाद (कर्मभूमि)का समय आया। उस समय लोग अपने मानवीय जीवनकी प्रारंभिक बातोंसे अनिभिज्ञ थे। ऐसे समय जगतके आदि गुरु, उपर्युक्त गुणोवाले मति, श्रुति, अवधिज्ञानके धारक श्री ऋषभदेव तीर्थकर भगवान अवतीर्ण हुए.थे। इन्हींके।