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________________ AAMANA १८. भगवान महावीर करकमलोंद्वारा आर्यसभ्यता पठिवित हुई थी। उन्होंने मनुष्यों को उनके देनिक सत्य असि, मसि, कृषि आदि भीवनोपयोगी कलाचातुर्य और शिल्प आदि लौकिक कृत्य बतलाए थे और पारलौकिक हितके लिए वस्तु तत्वमय यथार्थ आत्मधर्मका खरूप समझाया था, यथार्थ स्थायी परमसुखका मार्ग बतलाया था और स्वयं उसपर चलकर संसारके संसर्गसे मुक्त होगए थे। मोक्ष होनेके पहिले आपने सर्व तीर्थकरोंकी भांति सदुपदेश दिया था। उसी प्रकार इस कालमें आप हीने सर्व प्रथम जैनधर्मका प्रकाश किया था । चौदह कुलकरों (मनुओं) मेंसे आप अन्तिम मर्नु, श्री नाभिरायके पुत्र थे और माता मरुदेवी थीं। आप इक्ष्वाकुवंशके आदि जन थे। आपके दो विदुषी सहधर्मणी यशखती और सुनन्दा थीं। यशखनीसे भरत और पुत्री ब्राह्मी व अन्य पुत्रोंका जन्म हुआ था। और सुनन्दासे पाहुवली व सुन्दरी नामक कन्याका जन्म हुआ था। ये दोनों कन्यायें ही वह भारतीय .ललनाऐं हैं जिन्होंने सर्व प्रथम साधुवृत्ति धारण की थी। उन्होंने अपने पिता ऋषभदेवळे निकट आर्यिकाके व्रत ग्रहणकर देशविदेश भ्रमणकर । दुःखित आत्माओंका कल्याण किया था। वृषभदेवके पौत्र मरीचने भी संसार त्याग दिगम्बरी दीक्षा ग्रहण की थी; पर वह तपश्चरणकी कठिनताको सहन न कर सकें, और अपने एक अन्य मार्ग-मतका अवलम्बन करने लगे थे। भगवानके पुत्र भरत चक्रवर्ती और बाहुबलिमें युद्ध हुआ था । बाहुबलिने भरतको परास्त किया था, परंतु तत्क्षण बाहुवलिको इस घटनासे वैराग्य उत्पन्न होगया था। और उन्होंने मुनिधर्मकी शरण लेकर मुक्ति लाम किया था।
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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