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________________ सा '' भगवान महावीर। memmmmmmmmmmmm M संसार परिस्थिति। "गीयते यन्त्र मानन्दं पूर्वाहे ललितं गृहे। तस्मिन्नेवहि मध्यान्हे, सुदुःखमिह रुद्यते ।"-ज्ञानार्णव । . जिस घरमें प्रभातके समय आनन्दोत्साहके साथ सुन्दर सुन्दर मंगलीक गीत गाए जाने हैं, मध्यान्हके समय उसी धरने , दुःखके साथ रोना सुना जाता है। संसारकी कुटिल लीला एक अनोखी आश्चर्यमय पुनरपि घटनास्थली है। जिसका जान विकाश है कल उसका अन्त है । दूर क्यों नाइए ना दिवस .ाखोके सामने दिनकर गटारणिका अरुणोदय होता है और को पहुंचकर, अन्तमे अन्तकाल होजाता है। और फिर वही उदय उत्कर्ष और, अन्त होता है । चन्द्रकी शुभ-श्वेत--वसना-ज्योत्स्ना अपने आलोकसे लोकके हृदयको रजित करती है पर वही क्रमशः लुप्त होती है किन्तु अपना क्रम जारी रखती है। तभी तो कवि कहता है"चिन्ता नहीं जो व्योमविस्तृत चन्द्रिकाका हास हो। चिन्ता तभी है जपान उसका फिर नवीन विकास हो। सुललित सुवासित रम्य वाटिकामे जो पुष्प थोड़ी देर पहिले पावस पवनके झोकोके साथ इठलाती रंगरलियां कर रहा था वही थोड़ी देर पश्चात् आपको अपने क्षणभंगुर जीवनपर पछताते नजर भायगा। बेगक आपको उसकी मनमोहक मुरत और पारी मीठी सुगन्धकी याद भले ही रह रहकर आए परन्तु वह पुष्प अब यहां! उसकी जीवनलीलाका अन्त होगया।
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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