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________________ www वीर दर्शन। समान और राष्ट्र संज्ञा' (चेतना) हीन होकर अपने गतागत यानी भूत भविष्यतूका विचार नहीं करता, वह यह नहीं जान सका कि मेरा भूतकाल कैसा था, वर्तमानमें क्या हालत है, भविष्यमें क्या दशा होगी। इस प्रकारके 'संज्ञा' शून्य मनुष्य, समाज और राष्ट्रसे । अज्ञान होकर अपनी हालतसे अनभिज्ञ होकर जगत (लोक) की स्थितिको नहीं जान सके और अपने कर्तव्याकर्तव्य (कम) का भी ध्यान नहीं ला सक्के, फलतः उद्यमहीन हो अवनति दशाको प्राप्तकर राष्ट्रको भाते हैं । इसलिए अपने उद्धारके लिए हमे परमार्थ और व्यवहार दोनोके ज्ञानका उपाय करना आवश्यक है। भगवान महावीरका भव्य जीवन इस ज्ञानके उपाने मा-करनेमें हमारी सहायता कर सका है । अस्तु, वस्तु स्वरूपका ध्यान रखें क्रमशः चलिए उनके २५०० वर्ष प्राचीन जीवन कालमें प्रवेश कर उनके जीवन चरितसे अपनी आत्माका कल्याण करें। और संसारकी परिस्थिति और कालचक्रका नियातन आदि देखते चलें। Bar See
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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