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' संसार परिस्थिति। ___ इसलिए प्रकृतिके नियमानुसार अथवा वस्तु-स्वरूपके अनुरूपमें सांसारिक वस्तुएँ उत्पाद-ध्रौव्य-व्यय-युक्त वीरवाणीमें, बतलाई गई है। प्रत्येक द्रव्यफी यह तीन अवस्थाऐं संसारमें होती रहती हैं । यद्यपि यथार्थमें द्रव्यका अभाव नहीं होता। सोनेकी 'अंगूठी बनी, ( उत्पाद ) बनवानेवालेने उसे कुछ दिनों पहिना (नौव्य ) अन्तमें तुडवा -डाली. ( व्यय ) परन्तु सोना अब भी मौजूद रहा। वही प्रभूवीरकी, बतलाई हुई द्रव्यार्थिक और पर्यायाथिक दृष्टियां यहां भी काम कररहीं हैं। वीर वाणीमें यही उत्कृष्टता है। "
इसी नियमके अनुसार '-महावीर भगवानने अपने पूर्व गामी तीर्थकर श्री पार्श्वनाथनीक शासनकालमा नो,अन्य विधर्मी पन्थोंकी बाहुल्यतासे मन्द पड़ गया था उसको अपने वीर शासनकी उत्पत्ति की थी। और धीरे धीरे - भारत समग्र देशोमें पवित्र वीरशासनका प्रचार किया था। जैसा कि जैन ग्रन्थोके अतिरिक्त बौद्धशानों और गिलालेखादिसे प्रकट होता है। बल्कि क्रमानुगत वह पावन शासन विदेशोंमें भी प्रचलित हो गया था; जैसा कि प्रो० एम. एस. रामास्वामी ऐंगार एम० ए० अपने व्याख्यानके मध्य कहते हैं कि "चौड, अमण और जेन साधु अपने धर्मका प्रचार करनेके लिए यूनान, रोम और नारवे जैसे सुदूर देगोको गए थे। " (See. The Hindu of 25th Tulr 1919.) पर प्रति नियमने पल्ला खाया, जहां प्रायः सब न्यानोपर धर्मनी प्रभावना होने लगी थी। जिन शासनने सारे संसारपर एक ही साथ दया-शांति-सना आदिकी पुण्यभावना