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श्वेताम्बरकी उत्पत्ति। भी वह बलि पूजा सबसे पहिले उसके नामसे दी जाती है। वह खेताम्बर संघका पूज्य कुलदेव कहा जाता है। यह मार्ग भ्रष्ट खेताम्बरोंकी उत्पत्ति कही।........"
"भावसंग्रह विक्रमकी दशवी शताब्दिका बना हुआ ग्रन्थ . है, प्राचीन है, अतएव हमने उस परसे श्वेताम्बर सम्प्रदायकी उत्पत्तिकी इस कथाको यहां उद्धर्त करना उचित समझा ।"
__भट्टारक रत्ननंदिने भद्रबाहुचरित्रका अधिकांश इसी काको पडवित करके लिखा है । इसमें कोई संदेह नहीं कि उनकी कथाका मूल यही है। परन्तु उन्होंने अपने अन्यमें इस कथामें जो परिवर्तन किया है, वह बड़ा ही विलक्षण है। उनके परिवर्तन किये हुए कथा भागका संक्षिप्त खरूप यह है--'भद्रबाहु खासीकी भविष्यहाणी होनेपर १२ हजार साधु उनके साथ दक्षिणकी ओर विहार कर गए, परन्तु रामल्य, स्थूलाचार्य और स्यूलभद्र आदि मुनि श्रावकोंके आग्रहसे उज्जयिनीमें रह गए । कुछ ही समयमें घोर दुर्भिक्ष पड़ा और वे सब शिथिलाचारी होगए। उधर दक्षिणमें भद्रबाहुखामीका शरीरान्त होगया । सुमिक्ष होनेपर उनके शिष्य विशाखाचार्य आदि लौटकर उज्जयिनीमें आये । उस समय स्कूलाचाम्ने अपने साथियोको एकत्र करके कहा कि शिथिशवार छोड़ दो; पर अन्य साधुओने उनके उपदेशको न माना और क्रोधिन होकर उन्हें मार डाग । स्यूलाचार्य व्यन्तर हुए। उपद्रव करनेपर वे कुलदेव मानकर पूजे गए । इन शिथिलाचारियोसे 'अईफालकर (आयो कपड़ेवाले ) सम्प्रदायका जन्म हुआ। इसके बहुत समय बाद उज्जयिनीमें चंद्रकीर्ति राना हुआ। उसकी पन्या वलनीपुरके