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भगवान महावीर ।
प्राप्त हो जायगे, और स्वतंत्रता, अतीद्रियता और आनन्दका उपभोग होने लगेगा । इस समुचित प्रणालीका ढंग वैज्ञानिकरूपमें कार्य कारणके सिद्धान्तपर निर्भर है । अतः यथार्थ तत्व केवल सात हैं: (१) जीव, (२) अजीव, (३) आस्रव, (४) बंध, (५) संवर, (६) निर्जरा और (७) मोक्ष ।
शुद्ध निश्चयरूपमें आत्मा ही परमात्मा है जैसे प्रारंभ में पहिले कह चुके हैं। अतएव प्रत्येक द्रव्यकी विविध अवस्थाओंके स्वरूप और शक्तिको समझने के लिए द्रव्यार्थिक शुद्ध निश्चयनय और पर्यायार्थिक अर्थात् व्यवहार नय दृष्टियां है। वस्तुकी यथार्थ स्थितिके पुर्त तक पहुंचने के लिए स्याद्वादका यथार्थ भाव समझना चाहिए ।
' मोह समस्त पापोंकी जड है। इससे राग और द्वेषका जन्म होता है । यह फिर आत्मासे उत्तरोत्तर अन्य पापको कराते - हैं और पापोंसे कर्मबन्ध होता है इसलिए पापोसे बचनेके लिए इच्छाका निरोध करना चाहिए, रागद्वेषको जलांजलि देना चाहिए । सम्यकचारित्रका पालन करनेके लिए (१) हिसा, (२) झंठ, (३) चोरी, (४) कुशील, (५) और परिग्रहका त्याग करना योग्य है । यह चारित्र दो प्रकारका है, (१) सकलचारित्र, (२) और विकलचारित्र । इनमेंसे सकलचारित्रके महाव्रतोंका पूर्णरूपेण पालन मुनियों द्वारा होता है, जिन्होने सांसारिक वस्तुओका ममत्व त्याग दिया है। विकलचारित्रके अणुव्रतोंका एकदेश पालन सांसारिक कार्यो में व्यस्त गृहस्थोद्वारा होता है।
श्रावक महाव्रत धारण करनेके लिए क्रमसे श्रेणी श्रेणी
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