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भगवान महावीर। काल भी उतना ही चलाव बड़ावके लिए आवश्यक है । धर्म, अधर्म
आत्माको चलनेमे व अवकाश ग्रहण करनेमें क्रमश सहकारी हैं। ___ जीवात्मा सदैवसे कर्ममलसे मिश्रितावस्थामें है, जिस प्रकार आक्सीजन और नाइट्रोजेन गैसे, मिश्रितावस्थामें जलरूप हैं। आत्माकी इस मिश्रितावस्थामें हर समय हलनचलन उत्पन्न होती रहती है। हर समय उसमें कर्ममल आता और जाता रहता हैककि आगमनको आसव कहते हैं । आसवके उदयरूपमें,आत्मा पुद्गलपरमाणुओ कार्माणवर्गणाओंको खतः ही आकर्षित करने लगता है, और इसके विविध कषायोवश ये परमाणु आत्मासे मिल जाते हैं, जिससे आत्माके निजगुण ढंक जाते हैं और बंध बन्द जाता है। अनादिसे ही इन कर्मोके आश्रव और बन्धसे दूषित होनेके कारण जीवात्मा अनादिसे ही जन्ममरण धारणकर भ्रमण करता 'फिर रहा है। यह कर्मबंध आत्मा और पुगलके मेलसे होते हैं। और इन्हीसे जीव अपनी खाभाविक पूर्णता और खतंत्रतासे हाथ धो बैठता है। इस प्रकार बंधयुक्त कर्म जंजीरोंसे जकड़ी हुई आत्मा उस चिड़ियाके सहश है जिसके पंख सी दिए गए हों, जिसके कारण वह उड़ नही सकी है। आत्मा वा जीव वास्तवमें चिड़ियाकी तरह स्वतंत्र है। परन्तु पुदलके सम्बन्धके कारण अपने पंख कटे हुए सा समझता है और अपने सामाविक सुख व स्वतंत्रताका उपभोग नहीं कर सका है। आत्मामें कर्म वर्गणाऐं आखवित होकर कालस्थितिके लिए मिल जाकर ठहर जाती हैं। इस लिए आश्रवसे बन्ध होता है। निर्वाण अथवा मोक्ष प्राप्त करनेके पहिले इन कितने ही प्रकारके बंधनोंको तोड़ना पड़ता है।