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- उनकी शारीरिक शक्ति बहुत ही क्षीण होगई और 'बेहोशी की नौबत पहुंची तो उन्होंने विचारा कि:
"न इन कठिनाइयो के अनिष्ट मार्ग द्वारा मैं उस पृथकू और सर्वोत्कृष्ट सम्पूर्ण आय के ज्ञानके प्रकाशको जो मनुप्यकी बुद्धिसे परे है, प्राप्त कर पाऊँगा । क्या यह संभव नहीं है कि उससे प्राप्त करनेका कोई अन्य मार्ग हो ? " (इन्साइक्लोपीडिया ओफ रिलीजन ऐंड इथिक्स भाग २ पृष्ट ७० ) ।
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विश्वास इसीका नाम है । इतनी कठिन तपस्याके निप्फल होने पर भी हृदय से सर्वज्ञताका ध्यान न गया। केवल यही विचार उत्पन्न हुआ कि अथवा उसकी प्राप्तिका कोई दूसरा मार्ग तो नहीं है । हां ! यह अद्धा, यह विश्वास इसी कारण था कि महात्मा बुद्धदेवने खयं अपनी आंखों से परमात्मा महावीरमें उस सर्वज्ञताका चमत्कार देखा था। क्या सुनी सुनाई सर्वज्ञतामें इतनी गाढ़ श्रद्धा होती थी कि वर्षोंकी कठिन से कठिन तपस्याके पश्चात् भी उसका ध्यान हृदयमें जमा रहे ? बुद्धदेवने जिन सुन्दर और गम्भीर शब्दों में सर्वज्ञताकी प्रशंसा की है वह ध्यान देने योग्य है :
" वह पृथक् व सर्वोत्कृष्ट सम्पूर्ण आय्योंके ज्ञानका प्रकाश जो मनुष्यकी बुद्धिसे परे है। "
यही सर्वज्ञता है जिसके कारण तीर्थकर भगवान परमगुरु और परमपूज्य माने जाते है और यही सर्वज्ञता प्रत्येक भव्य-जीव को भोटा प्राप्तिके पहिले घातिया कमौके सर्वथा नाग होजानेपर मिलती है। जैनधर्म सर्वशता और मोक्ष प्राप्तिका मार्ग है. जिसको