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मक्खाली गोशाल और पूरण काश्यप। १७७ उन्होने आजीवक सम्प्रदायकी उत्पत्ति ईसासे ७०० वर्ष पहिले एक हिन्दू वानप्रस्थके ब्राह्मण ऋषिसारभङ्ग वा उदैकौन्डलके शिष्य किपवच्छके द्वारा मानी है। यद्यपि किषवच्छके पहिले भी वे नन्दवच्छ नामक वानप्रस्थ ऋषिसे आजीवक सम्प्रदायका संबन्ध बतलाते हैं और यह ऋषि ब्राह्मण वानप्रस्थसे किसी कारणवश विलग होगए थे तथैव अपने पृथकूपनेकी स्वाधीनताको बनाए रखनेके लिए इन्होंने वानप्रस्थके खिलाफ रहकर अपना पृथक् रूप प्रकट किया था। इनका दिगम्बर भेष और पूर्वोसे आठ महानिमित्तों और दो . मार्गोका लेना व्यक्त करता है कि इन्होंने पार्श्वनाथजीके तीर्थकालमे प्रवर्तित जैन धर्मसे बहुत कुछ लिया था। भगवान पार्श्वनाथके तीर्थकालके जैन मुनि वस्त्र धारण करते थे, यह मानना बिलकुल मिथ्या है । क्योकि वे भी निर्ग्रन्थ श्रमण कहलाते थे और उनके वस्त्र धारण करनेका उल्लेख न बौद्ध ग्रन्थोमें मिलता है
और न हिन्दुओंके शास्त्रोमे । इसका विशेष उल्लेख हम श्वेताम्बरोका उल्लेख करते हुए अगाडी करेंगे । अस्तु, भगवान महावीरने मानीवक सम्प्रदायके सिद्धान्तोंसे कुछ नहीं लिया था, क्योकि उसके सिद्धान्त खयं अपूर्ण और अवैज्ञानिक थे, बल्कि उल्टे जैनियोके पूर्वोसे आठ महानिमित्तों और दो मार्गोको लेकर आजीविकोंने अपने धर्मशास्त्रो की रचनाकी, और कुछ २ नैनधर्मसे और कुछर वानप्रस्थसे मिलते जुलते सिद्धान्तोके माननेवाले रहे और उनने नग्नवेष श्री पार्श्वनाथ भगवानके तीर्थकालके साधुओके दिगंबर वेषसे लिया था, क्योंकि आजीवकोंसे पहिले सिवाय जैनधर्मके अन्य किसीने भी दिगम्बर भेषका निरूपण नहीं किया । जब मक्खाली