________________
१६८ . भगवान महावीर ।
momimmenseminimumminimirmwommmmmmmmmmmm गोशालके नेतृत्वमें आजीवक सम्प्रदाय आगयातब वह एक धार्मिः ।
करूप धारण कर सका था; यद्यपि अपने पितृ धर्मकी (वानप्रस्थ) 'बहुतसी बातें उसमें तब भी, रहीं थी, जैसे वनमें भ्रमण करना, "शरीरकी परवा न करना, वनके कलोंपर निर्वाह करना, मनुष्योंसे
दूर रहना अथवा, गोवर या मच्छी खाना, डन्डा हाथमें रखना .. इत्यादि। . . . . . मक्खाली गोशालने आजीवक सम्प्रदायका विशेष प्रचार किया था। उसका मुख्य कार्यक्षेत्र श्रावस्ती रही थी। यद्यमि .. उसका प्रचार समस्त मध्यदेशमें हो गया था। मक्खाली गोशालो २४ वर्ष तक अपने मतका प्रचार किया था। वह अपनेको तीर्थकर प्रगट करता था । आश्चर्यका विषय है कि भगवान महावीरके अतिरिक्त उस समय अन्य पांच मताप्रवर्तक भी अपनेको तीर्थकर प्रगट कर रहे थे ! परन्तु जरा विचार करनेसे हमे उनका अप'नेको तीर्थकर प्रगट करनेका कारण मालूम हो जाता है। बात यह है कि उस समय लोगोंको मालूम था कि २३ तीर्थकर हो चुके हैं और अंतिम २४वें होनेवाले हैं, जिनकी वह लोग स्वभावतः बाट जोह रहे होंगे, क्योंकि धर्मका हास उस समय पूर्णतया हो चका था. जैसा कि हम पहिले देख चुके हैं। इस कारण हरकोई अपनेको तीर्थकर वतलाकर ब्राह्मणोंका विरोध करके लोंगोंको अपना लेता था । मक्खाली गोशाल भगवान महावीरसे उमरमें बड़े थे, और उनकी मृत्यु भगवानकी निर्वाण प्राप्तिके पहले होचुकी थी। इसलिए उनने अपने धर्मका जो कि बहुतसी वाह्य बातोंमें प्राचीन जैनधर्मसे मिलता था जैसा कि हम पर लिख चुके हैं,