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भगवान महावीर। उनका कभी जिनत्व स्वीकार किया न था। निम्रन्थ एवं आजीवक सम्प्रदायके मध्य बहुत दिन तक परस्पर द्वेषभाव रहा । आनीवक गणको विश्वास था,-परिणाममें मोक्ष या परममार्ग पानेपर सब जीवोंको चौरासी लाख कल्प सप्तदेवयोनि, सप्तनड़योनि, सप्तजीवयोनि, और सप्तजन्मान्तर अतिक्रमण करना पड़ता है। "
(हिन्दी विश्वकोष भग २ पृष्ठ ५२२-५२३) उपर्युक्त वर्णनसे हमें आजीवक सम्प्रदायका पृथकत्व, उसके पसिद्ध प्रवर्तक आचार्य मक्खाली गोशालका जन्मसंबंधी विवरण, महावीरस्वामीसे संबंध और उनके श्रद्धानयुक्त सिद्धान्तका पता चल जाता है। जन्मसंबंधी विवरणकी पुष्टि चौद्धग्रंथ भी करते हैं, परन्तु भगवान महावीरखामीसे जो उनका · सम्बन्ध शिष्यरूपमे प्रगट किया गया है, उसका उल्लेख बौद्धग्रंथोंमें कहीं नहीं मिलता है, और वह दिगम्बराम्नायके दर्शनसार ग्रन्थके, उक्त डोककी मान्यताके विपरीत है। एवं डॉ. बारुआने अपनी पुर्वोल्लिखित 'आजीवक' नामक पुस्तकमे इसको अच्छी तरह प्रमाणित किया है कि भगवान महावीरका मजलि गोशालसे शिष्यपनेका संबन्ध नहीं था। और वे कहते हैं कि " भगवती सूत्रका यह वर्णन स्वयं उसीकी एवं अन्यत्रकी व्याख्याओंसे बाधित होता है। इतिहासवेत्ताके भ्रममें पड़नेकी और गोशालके प्रति अन्याय करनेकी संभावना है यदि वह भगवती सूत्रके विवरणको नितान्त ऐतिहासिक सत्य मान लेगा।" परन्तु उनका यह कहना कि खयं महावीर भगवानने आनीवक सम्प्रदायके सिद्धान्तोसे अपने धर्मोपदेश देनेमें सहायता ली थी, नितान्त भ्रमपूर्ण प्रतीत होता है, क्योकि