________________
मक्वाली गौशाल और पूरण काश्यप । १७५
.
संसार छोड़नेके बाद दूसरे वर्ष राजगृहमें सामान्य भिक्षुकरूपसे गोशाल भी जा पहुंचे । गोशाल महावीरखामीका परिचय पाकर उनके शिष्य होनेको उद्यत हुए थे। भगवान महावीरने गोशालकी प्रार्थना पूर्ण की। फिर ६ वर्ष गोशाल उनके सङ्ग शिष्यरूपसे रहे एवं उसी समय से क्रमशः सुख, दुःख, रति, विरति, मोक्ष और बन्धन प्रभृति विषय समझने लगे । पीछे कूर्म नामक आममें भगवान महावीरके साथ गोशालका मतभेद हुआ था। राहमें फलपुष्पशोभित तिलवृक्षको देखकर गोशालने महावीरस्वामीसे जिज्ञासा की, - यह वृक्ष मरेगा या नही, एवं मरनेके बाद इसके सप्तजीवका क्या परिणाम होगा ? महावीरस्वामीने उत्तर दिया, वृक्ष मर जायगा, किन्तु इसी वृक्षके बीजसे पुनः सप्तजीव उत्पन्न होगा । गोशालने उनकी बात पर विश्वास नकर वृक्षको उखाड़ डाला था । कई मास बाद दोनों जब उस स्थानको वापस गए, तब यह देख दङ्ग रह गए, कि पानी पड़नेसे उसी तिलका एक बीज पेड़ हो गया था । महावीरस्वामीने गोशालसे कहा, हमने तुमसे पूर्वमे जो बताया, उसका प्रत्यक्ष प्रमाण देख लीजिए। पहला वृक्ष मर गया था, परन्तु उसीके बीजसे नूतन वृक्ष उत्पन्न हुआ । गोशाल फिर भी उनकी वातपर विश्वास कर न सके, और पेड़का एक बीज उठा उसकी छाल नोच २ कर देखने लगे, कि प्रकृत ही उसके मध्य अति सूक्ष्म सात दाने थे ! इसीसे गोशालको धारणा हुई, केवल वृक्षलता ही नही सकलजीवका जन्मान्तर संभव है । फिर कठोर योन्य साधनकर गोशालने अनानुपिक क्षमता प्रात को एवं स्वयं एक जिनके नामसे परिचित हुए, किन्तु महावीरस्वामीने