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भगवान महावीर।
होगई। गोपालके द्वारा मगधेश, बिम्बसारने इसके विषयमें सुना
और वे उसके निकट वैशालीमें आए, यद्यपि उस समय वे वैशालीसे युद्ध कररहे थे और सात दिनतक उसके यहां रहे। आम्रपालीको इनसे गर्भ रहगया और एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसको उसने अपने पिताके पास भेज दिया। यह बालक राजाके निकट निर्भयरूपसे पहुंचा और उनकी छातीपर चढ़ गया, जिससे उनने कहा कि इस बालकको भय नामनिशानको नहीं मालूम होता। सो वह अभयके नामसे विख्यात हुआ". । उक्त कथा मि० बिमलचरण लॉ० एम० ए० बी० एल० की पुस्तक The Kshatriya clans in Buddhist India P. P. 127-28 में दी हुई है। और इस पर मि० लॉका कथन है कि "यह कथा जो अभय अथवा जैन शास्त्रानुसार अभयकुमारको वैशालीकी वेश्या आम्रपालीका पुन व्यक्त करती है, पाली ग्रन्थों (बौद्ध) के खिलाफ है।" यथार्थमें जैनियोंसे द्वेषके कारण बौद्धोंका इस प्रकार लिखना ठीक ही है। उन्होने इनकी माताकी वास्तविकताका चित्र चित्रण किया है। कुमार अभय महावीर, खामीके परमश्रद्धालु शिष्य थे और जैनधर्मके पक्के अनुयायी थे यह बात स्वयं बौद्धग्रंथके निम्न वर्णनसे प्रगट है:- .
"जब आनंद (बुद्धके मुख्य शिप्य) वैशालीमें थे, तब अभय नामक लिच्छावी और एक अन्य पण्डित कुमार नामक लिच्छावी । आनन्दके पास आए। अभयने आनन्दसे कहा कि " निग्रन्थ नातपुत्त (भगवान महावीर ) सर्वज्ञ और सर्वदर्शी है। वह ज्ञानके प्रकाशको जानते हैं (अर्थात् केवलज्ञानी हैं ) उन्होने जाना है कि