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अभयकूमार व अन्य राजपुत्र । १५५ ध्यानद्वारा पूर्वकर्मोको नष्ट किया जा सका है। कर्मोके नष्ट होनेसे दुःखका होना वन्द होजाता है । दुःख (Suffering )के बन्द हो जानेसे हमारी विषयवासना नष्ट होजाती है और विषयवासनाके क्षय हो जानेसे संसारपर अगाड़ी दुःख नही होगा। इस वर्तमान जीवनमें दुःखसे निवृत्ति शुद्धता द्वारा है।" (Anguttara Nikaya, Vol. 1. (P. T. S.) P. P. 220-221)*
अस्तु, कुमार अभय राजा श्रेणिकके पुत्र थे। वे असाधारण विद्वान थे। उनकी विद्यापटुता और न्यायदर्शिताका अनुपम वर्णन जैन शास्त्र श्रेणिकचरित्रमें खूब दिया हुआ है । उन्होने युवराज अवस्थामें उत्तम नीति और बुद्धिमत्तासे काम लिया था।
अंतमें हम देख चुके हैं कि कुमार अभय भी श्रेणिकमहाराजके साथ २ महावीरखामीके समवशरणमें गए थे। वहांपर इन्होंने भगवानका दिव्य उपदेश और अपने पूर्व भवार्णव सुने थे । इस कारण इनको संसारसे अरुचिसी होगई थी। अस्तु, कुछ काल पश्चात् संसारकी वास्तविक स्थितिको जानते हुए, वे राजसमामें आए। ' उन्होने भक्तिपूर्वक श्रेणिक महाराजको नमस्कार किया और वे समस्त सम्योके सामने सर्वज्ञभाषित अनेक भेद प्रभेदयुक्त यथार्थ तत्वोंका उपदेश करने लगे। तत्वोंका व्याख्यान करते २ जव सब लोगोंकी दृष्टि तत्वोंकी ओर झुक गई तब अवसर पाकर अपने पितासे मुनि हो नानेकी आज्ञा
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is See Kshatriya Clans in Buddhist India P. P. 102-103.