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भगवान महावीर ' रांगा कुणिक और रानी चलना इस हृदयविदारक घटनासे चड़े दुःखी हुए और विलाप करने लगे । पश्चात् राना कुणिकने ब्राह्मणोको दान दिया, इससे विदित होता है कि उसका विश्वास ब्राह्मण धर्ममें भी था।
रानी चलनाको संसार असार दीखने लगा इसलिए उसने 'चंदना आर्यिकाके निकट दीक्षा लेली और तप तपकर देवगतिको
प्राप्त हुई । कुणिकके विषयमें अगाडी कुछ वर्णन नहीं है और 'पहिले वर्णनसे हमे ज्ञात हो चुका है कि वह मिथ्यात्वी हो गया यो अर्थात् उसने वौद्धधर्म स्वीकार कर लिया था।
इस प्रकार राजा श्रेणिक निम्बसारका सम्बन्ध भगवान महा'चीरसे प्रकट है जो पहिले बौद्धं थे पश्चात् रानी चेलनाके प्रमावसे भगवान महावीरके परममक्त और आम शिप्य होगए थे । साथमे यह भी प्रकट है कि राजा चेटकके यहां जैनधर्मका गाढ़ श्रद्धान था।
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