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श्रेणिक और चेरका १४९ उदयसे युवरान कुणिक महाराज कहे जाने लगे। वे नीतिपूर्वक 'नाका पालन करने लगे और समस्त पृथ्वी उन्होंने चौरादि भयविवर्जित करदी।" ___“ कदाचित् महाराज -कुणिक सानंद राज्यकर रहे थे कि अकस्मात उन्हें पूर्वमवके वैरका स्मरण हो आया । महाराज श्रेणिकको अपना वैरी समझ पापी, हिंसक, महाअभिमानी, दुष्ट कुणिकेने मुनिकण्ठमें निक्षिप्त सर्पजन्यपापके उदयसे शीघ्र ही उन्हें काठके पीजरेमें बंद कर दिया। महाराज श्रेणिकके साथ कुणिकका ऐसा बर्ताव देखकर रानी चेलनाने उसे बहुत रोका किन्तु • उस दुष्टने एक न मानी, उल्टा वह मूर्ख गाली और मर्मभेदी दुर्वाक्य कहने लगा। खानेके लिए महाराजको वह रूखासूखा कोदोंका अन्न देने लगा और प्रतिदिन भोजन देते समय अनेक कुबचन भी कहने लगा । महाराज श्रेणिक चुपचाप उस पिजरेमें पड़े रहते और कर्मके वास्तविक स्वरूपको जानते हुए पापके फलपर विचार करते रहते थे। यह याद रखनेकी बात है कि यह घटना भगवान महावीरके निर्वाण प्राप्तिके पश्चातकी प्रतीत होती है। कुणिकके ईसासे पूर्व ४९१ में राज्याधिकारीके होनेके कुछ वर्ष 'उपरान्त ही यह घटना घटित हुई थी ऐसा प्रतीत होता है। इस समय कुणिकका हृदय बुद्धदेवकी ओर आकर्षित होरहा था ऐसा हमें बौद्ध ग्रन्थसे मालूम होता है और बहुत संभव है कि यही निमित्तकारण श्रेणिकको काट देनेको कुणिकको मिल गया था। क्योंकि बौद्धग्रन्थ अमितायुरध्यान सूत्र में लिखा है कि " अजात शत्रुने देवदत्तके कहनेपर अपने पिता विम्बसारको पकड़वा लिया