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.१५० "भगवान महावीर . और उन्हें सात दिवालोंसे घिरे हुए- कारावासमें डाल दिया ।
बिम्बसारकी परम-हितैषी महादेवी वैदेही (चेलना) ने स्नानादि क्रियाकर अपने हारमें अंगूरोंका रस छिपाकर उनके दर्शनकर रस
देकर इसके प्राण बचाए थे। अजातशत्रुने अपने पिता वावत दर्याप्त किया और पहिरेवाले सिपाहीसे ज्ञात किया कि वैदेहीने क्या किया था इससे वह क्रुद्ध होगया और अपनी माताको मारना चाहा परन्तु इसपर मंत्रियोने इसे रोका और उसने ऐसा करनेका
भाव छोड़ दिया। वैदेहीको भी एकान्त स्थानमें रक्खा गया।" • यह कथन श्रेणिकचरित्रके उपर्युक्त कथनके सदृश है, परन्तु इसमे
हमें कुणिकको अपने पिताको 'कष्ट देनेके निमित्तकारणका पता बलजाता है जैसे हमने उपर व्यक्त किया है। निस देवदत्तका उल्लेख है वह पूर्ण बौद्ध था और. म० बुद्धके स्थानपर खयं संघका नायक होना चाहता था। इस समय कुणिक इसका मित्र था, जिसकी रुचि बौद्धधर्मके प्रति पहिलेसे होगई थी। जैसे कि मि० के. जे. सॉन्डम अपनी गौतम बुद्ध नामक पुस्तक पृष्ठ ७०-७१पर लिखते हैं:-. Though they no mob for the firet time, it Seep's clear that bond at least of the Songtra had dealings with Ajatsafter Thilst he was still Rajkunigr." .
__ अर्थात् यचपि इस समय वे (गौतमबुद्ध और अमानमत्रु ) पहिले ही पहिल मिले, परन्तु यह प्रगट है कि कनमें कम संवा कुछ व्यक्तियोंश अमावसत्तम सम्पन्न उनी रानामगरवाल था। इसमें प्रगट है कि बोडो उकमाने और पूर्व नगर कपल