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१४८, भावान महावीर । mei n
. अर्थात् जनवरी, १८२४ के एसियाटिक सोसाइटीके पत्रमें: जो-हिन्दू यात्रीने हाल प्रगट किया है उससे प्रगट है. कि श्री महावीर खामीके समकालीन मगधदेशके राजा श्रेणिकने तीर्थकरों के मोक्ष स्थानोंकी खोज़ की और वहाँ चरण स्थापित किए।
. महाराज श्रेणिक आनन्दसे जिन भगवानके धर्मका पालन करते हुए-दिन व्यतीत कर रहे थे, कि आपके कुणिक नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था जिसके गर्म और जन्मसे ही ऐसे लक्षण हुए थे, जिससे प्रगट होगया कि, वह अवश्य ही महाराज श्रेणिकका शत्रु है । कुणिकका जन्म महाराज श्रेणिकके जैन मुनियोंकी परीक्षा लेने.वाद और भगवान के समवशरणमें आनेके पहिले होचुका था। रानी चेलनाने अपने पतिका इसे शत्रु नान इसे अन्यत्र भेज दिया था, परन्तु राजाने अपने पुत्र-मोहसे उसे मंगवा लिया था। रानफुमार कुणिक दिन प्रतिदिन बढ़तेर यौवनावस्थाको प्राप्त हो गए थे।. महारानी-चेलनासे कुणिकके अतिरिक्त वारिपेण, हल्ल, विदल, नितशत्रु और गजकुमार यह पुत्र और हुए थे।
, युवराज कुमार अभय मी पिताके साथ भगवान महावीरके समवशरणमें गए थे और धर्मोपदेश सुना था, इसलिए उन्हें संसारसे वैराग्य होगया था और वे मुनि होगए थे। उनके पश्चात् कुणिकको युवराज पद मिल था।
अनन्तर "किसी सनय धर्मसेवनार्य, चिताबिनाशार्थ और मुखपूर्वक स्थितिके लिए पूर्वनन्नके मोहसे महारानने समस्त भूपोंको इकट्ठा क्रिया और उनकी सम्मतिपूर्वक बडे समारोहके साथ अपना विशाल राज्य युवराज कुणिकको देदिया । अब पूर्व पुण्यके