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भगवान महावीर। अनेकवार सैकड़ों स्त्रियोंका भोग किया और श्रेष्ठ सम्पत्तिका भी खूब भोग किया, परन्तु खेद है कि विशुद्ध निजानन्द खरूप आत्माका स्मरण कमी नहीं किया जिसके कि स्मरणसे चैतन्यामृत समुद्रमें मग्न रहनेवाले पुरुषोंकि रागादिक शीव ही नष्ट होजाते हैं,
और मुक्तिलक्ष्मी उनके आधीन होजाती है। इसलिए हे माई ! प्रमादके वशीभूत होकर मनुष्य जन्मरूपी सारभूत मणियोंकी राशिवाले संसारमें सारभागको छोड़कर दरिद्री नहीं बने रहना चाहिये।"
-(वृन्दापनविलास पृ. १४५) क्षत्रचूड़ामणि जीवंधर ही धन्य थे कि उन्होंने अपनी आत्माका कल्याण किया था। जीवंघरखामी क्षत्रियोके चूड़ामणि अर्थात् वीर-शिरोमणि थे। इनके चरित्रको चित्रण करनेवाले ग्रन्थ नैनसमाजमें अनेक हैं। इनकी कथा बड़ी रोचक और चित्ताकर्षक है। क्या ही उत्तम हो कि इनके विषयमें ऐतिहासिक प्रकाश अपना विकाश प्रकटकरे ! जिसका प्रकट होना सुगम प्रतीत होता है क्योकि जीवधरखामीका ऐतिहासिक व्यक्ति होना विशेष युक्तिसंगत है। ____ भारतवर्षके सोनेकी खानियोकी शोभाको धारण करनेवाले हेमांगद नामक प्रदेशको राजधानी राजपुरी थी। सत्यंधर नामका राना राज्य करता था। राजा अपनी शीलवती विनया नामक रानीपर इतना आसक्त हो रहता था कि उसने अपने रामपाटया भारा मार एक कासांगार नामक रान-कर्मचारीक मूर्द कर दिया था। कुछ दिनो पश्चात विनया रानीक गर्भ रहा था। उस समय रानीको एक स्वम हुआ था जिनके पलको विचारकर गाने निलम
लिया कि में मारा जागा इसलिए उसने अपनी बनाने