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क्षत्रचूद
भगवान महावीरके संघमें राजषी
इससे हमें ज्ञात सामिग्रीके भो भी सम्मिलित थे और वे केवल श्रावकके ही व्रत नहीं पालते थे, बल्कि मुनिधर्मका पालनकर देशमें धर्मका प्रचार करते थे । अनेक प्रख्यात राजाओंने भी भगवानके समवशरणमें दीक्षा ली थी उनमेंसे कुछका वर्णन निम्न प्रकार है
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शव चूड़ामणि- जीवंवर । " करणer सुतृप्तिविधायिनः शुभगवन भूपितविग्रहः ।
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परविभूतियुताः सदुपायिनः
कति कति प्रथिता न नराविषाः ॥" "असद भुक्तं राज्यं युवति शतान्यपि तथैव भुक्तानि । 'वर सम्पदोपि चात्मा न खलु विशुद्धः स्मृतो निजानन्दः || येन स्मृतेन झटति प्रकटविनष्टा भवनि रागाद्याः । प्रभवति मुक्तिरधीना चैतन्यामृतपयोधिमग्नानाम् ॥ तद्भ्रातर इह लोके समुपगतनृनन्मसार मणिराशौ । भवितव्य न द: प्रच्युतसारेः प्रमादवश गत्वात् ॥"
जैनाचा उपर्युक्त छोकोद्वारा व्यक्त करते हैं कि "इन्द्रियोंको संतृप्त करनेवाले, सुन्दर यौवनभूपित शरीरवाले, उत्कट विभूतिके धारण करनेवाले और बड़ी २ भेटोके ग्रहण करनेवाले कितने २ राजा सारमें प्रसिद्ध नहीं हुए? ” "अनेकवार राज्यभोग किया,
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