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इन्द्रभूति गौतम। ११५ इस प्रकार विद्यार्थीका वेश धारण करनेवाला इन्द्र गौतमको वादका छल करके भगवानके निकट लिवालाकर-भगवानके मुख्य गणघर पदपर उनको आसीन देखता हुआ था। उस गौतमने दीक्षाके साथ ही पूर्वाह्नमें निर्मल परिणामोंके द्वारा तत्काल बुद्धि,
औषधि, अक्षय, ऊन, रस, तप और विक्रिया ! इन सात लब्धियोंको प्राप्त किया और उसी दिन अपराहमें उस गौतमने जिनपतिके मुखसे निकले हुए पदार्थोंका है विस्तार जिसमें ऐसे उपांग सहित द्वादशाङ्ग श्रुतकी पद रचना की। जब भगवान महावीरका निर्वाण होरहा था उसी समय आपको भगवानकी मोक्ष प्राप्तिके साथ २ केवलज्ञानकी प्राप्ति होगई थी। भगवान महावीरके पश्चात् आप ही संघके नायक रहे थे और भगवानकी मोक्षप्राप्तिके बारह वर्ष उपरान्त आप भी भगवानके अनुगामी हुए थे । इस प्रकार आप सुनि अवस्थामें पचास वर्ष रहे और कुल ९२ वर्ष जीवित रहे थे । आपके विषयमें चीनयात्री हुईनसांगने लिखा है कि वह महावीर स्वामीके मुख्य गणधर थे।
इस उपर्युक्त वर्णनसे हमे भगवान महावीरके मतकी धार्मिक उदारताका पता चलता है। भगवानके ज्ञानमें जो सत्यका प्रकाश हुआ, उसीको उन्होंने संसारके समक्ष प्रगट कर दिया और जिस भव्यको उस सत्यमें श्रद्धान हुआ उसीने यथार्थ धर्म स्वीकार
किया। किसी भी वाह्याडम्बरनप लालच य प्रमावसे किसीने . जैनधर्मकी शरण नही ली, बलि सत्य शनजी यथार्थतान्ने पार
ही लोग शगवानके अनुयायी हुए थे । इसपर जिसे धर्नमे सत्य. श्रद्धान हुआ और उसने चारित्रको धारणमिना वीजेन कहलाया।