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' ११४ भगवान महावीर । mmmmmmmmiummmmmmm मतलब है ? तत्वोंसे क्या भाव है? छै: लेश्यायें कौनसी हैं ? और वह अन्यथा अर्थ बतानेको भी साहस नहीं कर सके, क्योकि वह जानते थे कि यह वृद्ध पुरुष,नब इस श्लोकका यथार्थ अर्थ जानेगा तब मेरे अन्यथा वताए हुए अर्थके कारण मेरा उपहास करेगा, इस लिए उनने यह ही उत्तम समझा कि स्वयं भगवान महावीरके निकट
चलकर इस श्लोकका अर्थ बताना चाहिये, जिससे मिथ्या बतानेका ''दोष मेरे सिरपर न आवे और इसी विचारसे वह अपने दो लघु भ्राताओं-अग्निभूति और वायुभूति एवं अपने पांचसौ शिष्योंक साथ २ भगवान महावीरके समवशरणके लिए प्रस्थानित हुआ । मार्गमें उसे भगवान के निकट चलनेमें संकोचकी शङ्का भी हुई, परन्तु उनके भाइयो और शिप्योंने चलने का अनुरोध किया । भाइयों के अनुरोधसे इन्द्रभूति भगवानके समवसरणके निकट पहुंचे । पहिले मानस्तंभको देखते ही उनका मान और गर्व मन्द पड़ गया और समवशरणके भीतर प्रवेशकर त्रिलोकवंदित त्वयं भगवान महावीरकी परम वीतराग मुद्राको देखकर. उसका हृदय नत्रीत होगया, योगावस्याकी यात्मविभूति देखकर प्रभावित होगया । उन्होंने भगवानको साष्टांग नमस्कार किया, और भगवानके उपदेश सुननेकी वांछा प्रगट की। भगवानने उनको जनधर्मक तत्वोंग हतप वताय और जेनिटांतके यथार्थ मनको समझामा, निकले सुनकर