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इन्द्रभूति गौतम। ११३ ___इन्द्रको मालूम था कि इन्द्रभूति गौतम बड़ा मानी और गर्वी व्यक्ति है, यद्यपि उसकी बुद्धि निर्मल और विशुद्ध है ! इस लिये वह अपना रूप बदलकर एक बृद्ध विद्यार्थीक रूपमें उसके निकट पहुंचकर बोला कि " महारान ? मेरे पूज्य गुरुने मुझे एक श्लोक बताया है किन्तु उसका अर्थ बतानेके पहिले ही वे अपने शुक्लध्यानमें आरूढ़ होगए । अब इस श्लोकका अर्थ मुझे कोई नहीं बता सकता है परन्तु मैने आपकी विद्वत्ताकी महिमा खूब सुनी है । सुना है कि आप वेद और पुराणोंके पारगामी विद्वान् हैं और मुझे इस श्लोकके अर्थ जाननेकी उत्कट लालसा लग रही है। अस्तु, मैं आशा करता हूं कि आप इस श्लोकका अर्थ बताकर मेरी आत्माकी अशान्तिको मिटायगे । “इन्द्रभूति उस लोकका अर्थ बतानेको राजी होगए, परन्तु उन्होंने भी यह ठहरा लिया कि ' मेरे अर्थ बता देनेपर इन्द्रको मेरा शिष्य होना पड़ेगा।' वृद्ध विद्यार्थीरूप इन्द्रने यह बात स्वीकार करली और वह श्लोक पढ़कर सुनाया जिसका भाव करीब २ उपर्युक्त श्लोककी भांति था; अर्थात् छै द्रव्य त्रिकालिक हैं ? नव सत्पदार्थ हैं, पंचातिकायमें विश्वका समावेश होजाता है, क्रियाका फल यह मोक्षमार्गका स्वरूप है, तत्व सात हैं, जीवके छै लेश्यायें हैं, इन व अन्य जिनवर वचनोमें श्रद्धा रखते हुए मुक्तिमार्गके अनुगामी हैं, वे भव्य जीव हैं।"
गौतम इस श्लोकको सुनकर असंमजसमें पड़ गए, उनका मस्तिष्क चकराने लगा, वे कुछ भी नहीं समझ सके कि इसका अर्थ क्या हो सका है। छै द्रव्य क्या हैं ? पंचास्तिकावसे क्या